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करहि पड़त नासकार

प्रणव नार्मदेय

अन्य

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प्रणव नार्मदेय

करहि पड़त नासकार

प्रणव नार्मदेय

और अधिकप्रणव नार्मदेय

    संसारक सभ माए

    रक्त-मज्जासँ अपन

    गढ़ैत अछि जतनसँ सुन्नरसन कोमल कोंढ़ी

    गमकएबा लेल सगर सृष्टि

    आत्माक सुगन्धिसँ अपन

    सहैत अछि असहाज पीड़

    मुदा फुलयबासँ पहिनहि

    धर्मक प्रयोगशाला सभमे

    देखाक' काल्पनिक संसारक सपना एकटा

    बदलि देल जाइछ फूलक सभ गुण-धर्म

    टोभि देल जाइछ धथूरक काँट

    ओकर मोनकेँ कयल जाइछ बेमत्त

    बाट नपैत कुरुक्षेत्रसँ कर्बला धरिक

    बनिक' रहि जाइछ

    एकगोट पिजायल हथियार मात्र

    सभ अदृष्ट सत्ता

    जे पिटैत रहैत अछि डिगडिगिया

    सर्वशक्तिमान होयबाक अपन

    धर्मरक्षाक मादे

    सामर्थ्यक दंभसँ जकर

    रहैत अछि भरल

    बेस मोट, भरिगर आसमानी पोथी सभ

    तैयो धर्मरक्षाक ना पर

    खेलैए अपन देवत्वकलेल मनुक्खेक शिकार

    बनबैए मनुक्खताक विरुद्ध मनुक्खेकेँ हथियार

    ओहि सभ सत्ताकेँ

    नहि चाही अस्तित्व पर अपन कोनो प्रश्न

    तेँ जाबैत अछि मूँह सभक

    अन्ह आस्थाक जाबीसँ

    तोपि दैछ सभटा विरोधक स्वर

    घंटा-घड़ियाल-भोंपाक अनघोलसँ

    तर्ककेँ काटि देल जाइछ हरसट्टे

    जड़ मान्यताक तरुआरिसँ

    प्रकृतिक आँगनमे जखन

    कौआ-कुकुर, बाघ-हरिण, साँप-सपनौर सभ

    जन्मसँ मरण धरि

    जी सकैए अपन-अपन गुण-धर्मक संग

    तखन हम; मनुक्खक सन्तति

    कि एक बन जाइ

    कोनो दन्तार आदमखोर जानवर

    किएक करैत रही खुनियाँ नाँगट नाच

    बान्हल कठपुतरीसन अन्धविश्वासक राइससँ

    कोनो अनचिन्हार मुँहचोरक

    अहं-तुष्टिक लेल

    आब करहि पड़त नासकार

    होयबासँ षड्यंत्रक हथियार

    बचयबालेल मनुक्खक निजता

    मनुक्खताक गुण-धर्म

    आस्थाक जाबी फोलि

    लगाबहि पड़त प्रश्नचिन्ह

    'जँ तोँ ही नीति-नियन्ता, धर्म-ध्वज रक्षक

    त' देखाबह अपन सामरथ अपनहि

    बनाबह अपन धर्म कनिक धर्मयुक्त, भयमुक्त

    जँ से नहि त' लड़ह अपन धर्मयुद्ध अपनहि बुत्ते

    लेबहि पड़त मुक्ति आब

    जबकल मान्यता सभक गुमसराइन गन्हसँ

    जोह' पड़त आत्मामे अपन

    माइक अरजल नैसर्गिक सुगन्धि

    जाहिसँ हम; एकटा सपनजीवी प्रजाति

    बिलहि सकब सगर संसारमे

    एकटा सुन्नर, सबरंगा, शान्तिपूर्ण

    ग्रह पर जिउबाक सपना।

    स्रोत :
    • पुस्तक : विसर्ग होइत स्वर (पृष्ठ 75)
    • रचनाकार : प्रणव नार्मदेय
    • प्रकाशन : नवारम्भ, पटना
    • संस्करण : 2017

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