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पिता से बातचीत

pita se batachit

शैलेंद्र शैल

अन्य

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शैलेंद्र शैल

पिता से बातचीत

शैलेंद्र शैल

और अधिकशैलेंद्र शैल

    मैंने पिता से कहा...

    शहर चलो मेरे साथ

    —मुझे शहर नहीं जाना है

    उन्होंने ज़वाब दिया

    मैं यही ठीक हूँ

    इस छोटे पर खुले घर में

    जहाँ खुली हुई धूप है

    हवा है, पेड़ हैं और ढेर सारे पंछी

    मैंने ज़िद की तो बोले—

    चार आदमी भी नहीं मिलेंगे वहाँ

    कंधा देने को

    सुना है वहाँ पड़ोसी पड़ोसी से

    बात तक नहीं करता

    यहाँ गाँव वाले सुख-दुख बाँटते हैं

    और अंतिम यात्रा में

    शरीक होते हैं

    और सुना है वहाँ लोग

    पचहत्तर पार करने पर

    अमृत महोत्सव मनाते हैं

    मैं तो कर चुका अस्सी पार

    तुम्हें मालूम है ना?

    एक बात और

    वह जो कान की नई मशीन

    लाए हो तुम

    मुझे नहीं चाहिए अब

    जब से तुम्हारी माँ ने

    साथ छोड़ा है

    उसकी ज़रूरत नहीं रही

    हमारे बीच संवाद

    बरसों पहले ख़त्म हो गया था

    दरअसल मेरे पास ही

    कहने को कुछ नहीं बचा था

    अब अक्सर वे सिर्फ़ एकालाप करते

    कभी लंबे कभी छोटे

    शैक्सपियर के किसी पात्र की तरह

    पर आज वह बोलने के मूड में थे

    बोले— अगर तुम समय पर सको तो

    मेरी अस्थियाँ

    गंगा या जमुना में बहाना

    बहुत गंदगी समा आई है उनमें

    छोटे-बड़े कारख़ाने

    उड़ेल रहे हैं उनमें

    रात दिन तेज़ाब और ज़हर

    उन्हें किसी छोटी पहाड़ी नदी में बहाना

    या फिर इसी गाँव के खेतों में

    बिखरा देना मेरी राख़

    इतना कहकर वे शून्य में ताकने लगे

    शायद वे थक गए थे

    शहर लौटकर मैंने सोचा

    उनकी बात में कितना सच है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : तीन पीढ़ियाँ साठ कविताएँ (पृष्ठ 54)
    • रचनाकार : शैलेंद्र शैल
    • प्रकाशन : बोधि प्रकाशन
    • संस्करण : 2024

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