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पिता जी के दिन

pita ji ke din

राजेश राजभर

अन्य

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राजेश राजभर

पिता जी के दिन

राजेश राजभर

और अधिकराजेश राजभर

    मेरा घर मै—और पिता जी,

    प्रेम तीनों आपस में करते...

    परंतु एक साथ नहीं रहते,

    ज़िंदगी कई सालों से—

    चलती बदलतीं रहीं,

    प्रयास करती रहीं—

    एक साथ रहने की

    पिता जी को देखने की...

    लेकिन हम सफल नहीं रहे!

    दूर ही दूर रहे!

    मेरा घर मै और पिता जी—

    बढ़ती उम्र पिता जी की

    चढ़ती उम्र बच्चों की!

    दोनों के बीच मै भागता—

    अपना कल साधता

    कहीं मेरे बच्चे—

    रास्ता भटक ना जाएँ,

    कल उनका बिखर जाएँ—

    पिता जी की जब भी याद आती

    आँखे भर जाती!

    बचपन और जवानी—

    दोनों पिता जी की निशानी

    मेरा घर मै और पिता जी—

    उम्र के इस पड़ाव पर

    समय के उतार चढ़ाव पर,

    अकेला पन खटकता होगा

    जब कोई ठोकर—लगता होगा!

    तब बूढ़ी आँखों में—

    कई सवाल उठते होगें,

    बुढ़ापे की सहारा लाठी

    यहीं सोचते होंगे—

    मेरा घर मै और पिता जी—

    सीधा सच्चा सरल स्वभाव

    गाँव गली घर से लगाव

    पिता जी का चुप रहना

    बहुत कुछ कहता है

    यहीं भाव समझ कर—

    मेरे माथे पर बल पड़ता हैं!

    मैं कितना अभागा बच्चा हूँ,

    ना पिता जी मेरे साथ रहते,

    ना मै पिता जी के साथ रहता हूँ!

    मेरा घर मै और पिता जी—

    स्रोत :
    • रचनाकार : राजेश राजभर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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