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भक्ति और कर्म

bhakti aur karm

अनुवाद : सत्यकाम विद्यालंकार

ख़लील जिब्रान

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ख़लील जिब्रान

भक्ति और कर्म

ख़लील जिब्रान

और अधिकख़लील जिब्रान

     

    एक वृद्ध उपदेशक ने धर्म के संबंध में जिज्ञासा प्रकट की।

    उत्तर मिला :

    मैंने आज जो कुछ कहा है क्या वह धर्म के अतिरिक्त कुछ और था? क्या धर्म सभी
    कर्मों और सभी विचारों से भिन्न वस्तु है?

    और क्या वह भी जो न कर्म है न विचार, परंतु जो केवल आश्चर्यमय एक चमत्कार
    है, और जो उस व्यग्र समय में भी तुम्हारी आत्मा से फूटता रहता है, जब तुम्हारे हाथ
    प्रतिमा-निर्माण करने अथवा सूत कातने में व्यग्र होते हैं।

    कौन है जो अपने कर्मों से अपनी श्रद्धा को अथवा अपने विश्वासों से अपने व्यावसायिक
    व्यवहार-धर्म को पृथक करेगा?

    कौन है जो समय-सीमा को अपने सामने बिखेरकर ऐसा दो टूक विभाजन कर सके
    कि यह प्रभु के लिए है और यह मेरे लिए; यह मेरी आत्मा के लिए है और यह मेरे शरीर के
    लिए?

    हमारी घड़ियों के पंख लगे हैं जो अंह से अहं तक पहुँचने को शून्याकाश में रम रही हैं।

    वह व्यक्ति जो सदाचार को अपना सर्वोच्च-सर्वाधिक उपयोगी आवरण समझ
    परिधान धारण करते हैं, वे नग्न ही रहते तो अच्छे थे।

    पवन और वायु उनकी त्वचा में छिद्र नहीं बना सकते।

    जो अपने व्यवहार को शास्त्र की मर्यादा में बाँधता है वह हृदय की संगीत-सुषमा को
    पिंजरे में बंद करता है।

    स्वतंत्र संगीत लोहे की सींखचों और कंटीले तारों के कटघरे से पैदा नहीं हो सकता।

    और वह व्यक्ति जो पूजा को ऐसा वातायन मानता है, जो जब मन चाहा खोल लिया
    ओर बंद कर दिया, उसने अपनी आत्मा के मंदिर के दर्शन नहीं किए, जिसकी प्रतीक्षा में
    द्वार एक उषा से दूसरी उषा तक खुले रहते हैं।

    तुम्हारी प्रतिदिन की जीवनचर्या ही पूजा और धर्म हैं।

    जब भी तुम दिनचर्या प्रारंभ करो पूर्ण समर्पण-भावना से करो।

    इस देवमंदिर में जाते हुए अपने सभी साधन, हल, भट्टी, हथौड़ी और बंसी तथा वे
    सब उपकरण जो उपयोगिता और मनोरंजन के साधन थे, अपने साथ लेते जाओ।

    क्योंकि दिवास्वप्नों में भी तुम अपने लब्ध मनोरथों से ऊँचा नहीं उठ सकते और न
    अपनी विफलताओं से नीचे गिर सकते हो।

    इस उपासना में मानव मात्र को अपना साथी रखो।

    क्योंकि आराधना में तुम उनकी आशाओं से ऊपर नहीं जा सकते और विफलता में
    उनकी कल्पना से अधस्तर पर नहीं जा सकते।

    यदि तुम्हें प्रभु-दर्शन की कामना है तो पहेलियाँ मत बूझो।

    सरल मन से अपने समीप ही देखोगे तो तुम उसे अपने बच्चों के संग खेलते पाओगे।

    आकाश पर दृष्टि डालो और प्रभु को बादलों के संग उड़ता देखो, विद्युत तरंगों के साथ
    उसके हाथों का प्रसार होता है और वर्षा के साथ वह भूमि पर उतरता है।

    उसे फूलों में हँसते और वृक्षों की शाख़ाओं के संग हाथ उठाते और हिलाते देखोगे।

                                                 
    स्रोत :
    • पुस्तक : मसीहा
    • रचनाकार : ख़लील जिब्रान
    • प्रकाशन : राजपाल एंड संस
    • संस्करण : 2016

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