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आनंद क्या है?

anand kya hai?

अनुवाद : सत्यकाम विद्यालंकार

ख़लील जिब्रान

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ख़लील जिब्रान

आनंद क्या है?

ख़लील जिब्रान

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    तब एक अरण्यवासी साधु ने, जो वर्ष में एक बार नगर में जाता था, जिज्ञासा प्रकट की :

    आनंद क्या है?

    उत्तर मिला :

    आनंद एक स्वतंत्र गीत है,

    किंतु आनंद ही स्वतंत्रता नहीं है।

    वह तुम्हारी कामनाओं का पृष्ठ है,

    तथापि वह कामनाओं से भिन्न नहीं।

    वह है एक गहराई जो शिखर छूने को आतुर है,

    तथापि वह न गहराई है न उँचाई।

    वह एक पंजरबद्ध पक्षी के पंखों की फड़फड़ाहट है,

    तथापि वह सोमा में बंधा आकाश नहीं।

    सचमुच आनंद एक स्वातंत्र्य-गीत है।

    उचित है कि तुम भी इसे पूर्ण तन्मय होकर गाओ,

    किंतु इस गायन-व्यापार में अपने-आपको खो देने का मैं निर्देश नहीं दूँगा।

    तुममें से से कुछ नवयुवक आनंद की शोध में सब कुछ भूल जाते हैं, तब उनकी आलोचना और
    निंदा होती है।

    परंतु मैं उनकी आलोचना अथवा निंदा नहीं करूँगा, बल्कि उनके सफल मनोरथ
    होने की प्रार्थना करूँगा।

    ऐसे शोधकों को सुख की प्राप्ति तो होगी, किंतु आनंद की ही नहीं।

    आनंद की सात बहिनें हैं, किंतु जो सबसे कम सुंदर है वह भी आनंद से अधिक
    रमणीय है।

    वे सब उसे प्राप्त हो जाती हैं, जैसे कंद-मूल के लिए ज़मीन खोदने वाले को कदाचित्
    धनकोष मिल जाए।

    तुममें से कुछ पुराण पुरुष अतीत के आनंदमय उपभोगों को यौवन में किए गए पाप
    समझकर खेद मानते हैं।

    यह खेद मनरूपी आकाश पर मेघ बनकर छा जाता है, प्रायश्चित नहीं बनता।

    उन्हें अपने आनंदमय उपभोगों का स्मरण कृतज्ञता भरे दिल से करना चाहिए, जैसे
    ग्रीष्म की फ़सल का किया जाता है।

    यदि किसी को इस खेद-प्रकाश में ही समाधान मिलता है तो वे खेद करने में स्वतंत्र
    हैं।

    तुममें से कुछ ऐसे हैं, जो इतने युवक नहीं कि आनंद की खोज कर सकें, और इतने वृद्ध भी
    नहीं कि अतीत के आनंद का स्मरण करें।

    वे इस शोध और स्मृति के भय से बचने के लिए ही आनंद का त्याग कर देते हैं, ताकि
    कहीं उनसे आत्मा की उपेक्षा का अपराध न हो जाए।

    परंतु उनके इस त्याग में भी आनंद की एक झलक है।

    वे निरंतर काँपते हाथों से कंद-मूल खोदते हुए भी आनंदकोष प्राप्त कर लेते हैं।

    भला, आत्मा के प्रति अपराध कौन कर सकता है?

    क्या रात्रि की नीरवता को भंग करके कोयल अपराध करती है? और क्या जुगनू रात्रि
    के अंधकार में चमक कर नक्षत्रों की अवहेलना करते हैं?

    और क्या तुम्हारे ईंधन का धुआँ पवन के परिवहन के लिए बोझिल हो जाता है?

    क्या तुम यह समझते हो कि आत्मा एक शांत सरोवर के समान प्रशांत है जो हाथ
    की छड़ी से अशांत हो सकती है?

    प्रायः आनंद का विर्सजन करते हुए तुम अपनी इच्छाओं को हृदय की गहराई में भर लेते
    हो।

    कौन जाने, आज तुमने जिसका त्याग किया है, वह कल उठने की प्रतीक्षा कर रहा
    हो?

    इस शरीर को अपनी उत्तराधिकार में प्राप्त भूमि और प्रकृतिगत आवश्यकताओं का
    ज्ञान है, उसे ठगा नहीं जा सकता।

    तुम्हारा शरीर तुम्हारी आत्मा की वीणा है।

    उसके तारों में मधुर संगीत या अस्वरहीन कोलाहल भरना तुम्हारे हाथ है।

    तुम मन-ही-मन सोचते होंगे, हम सुख की शोध में श्रेय का अश्रेय से भेद स्थापित
    कैसे करेंगे?

    मैं उसका उपाय बतलाता हूँ।

    अपने खेतों और उपवनों में जाओ, तब तुम्हें पता लगेगा कि फूलों से मधु एकत्र करने
    में ही मधुमक्खी को आनंद मिलता है।

    परंतु फूलों को भी इसी बात से आनंद मिलता है कि वे अपना मधुकोष मधुमक्षिका
    को अर्पण कर दें।

    क्योंकि मधुमक्षिका के लिए फूल ही जीवन-स्रोत है, मधुमक्षिका प्रणय-दूत भी है।

    और दोनों के लिए आनंद को ग्रहण करना और आनंद का प्रदान करना आवश्यक
    जीवन-धर्म भी है और आनंद का स्रोत भी।

    ऐ आर्फ़लीज-निवासियो! तुम भी आनंद के शोध में पुष्प और मधुमक्षिका का
    अनुकरण करो।

                                                                                           
    स्रोत :
    • पुस्तक : मसीहा
    • रचनाकार : ख़लील जिब्रान
    • प्रकाशन : राजपाल एंड संस
    • संस्करण : 2016

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