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पढ़ाई

paDhai

रंजना जायसवाल

और अधिकरंजना जायसवाल

    मैं और मेरी माँ

    एक स्कूल में पढ़ते थे

    एक कक्षा में पढ़ते थे

    एक बैग एक यूनीफ़ॉर्म से सजते थे

    स्कूल से साथ-साथ लौटते

    भूख हमारा एक साथ इंतज़ार करती थी मेज़ पर

    रात के घने पहर में बुने जाते थे एक जैसे सपने

    भोर की पहली किरण के साथ सजती थी उम्मीदे

    कॉफ़ी के मग के साथ

    अंतहीन बहसों के साथ

    मैं साल दर साल सीढ़ियाँ चढ़ता गया

    माँ भी मेरे साथ चढ़ती रही उन सीढ़ियों पर

    अंत में मैं रुक गया अपनी ऊँचाई के साथ

    पलट कर देखा माँ अब रुक गई थी

    वो ख़ुश थी मेरी ऊँचाइयों से

    क्योंकि मेरी पढ़ाई ख़त्म होने के साथ

    उनकी यात्रा भी अब ख़त्म हो चुकी थी।

    स्रोत :
    • रचनाकार : रंजना जायसवाल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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