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मानउ बात हमारी

manau baat hamari

जगजीवन मिश्र ‘जीवन’

जगजीवन मिश्र ‘जीवन’

मानउ बात हमारी

जगजीवन मिश्र ‘जीवन’

और अधिकजगजीवन मिश्र ‘जीवन’

    गएउ अगर परदेस ठेलुहना बैठि बजाइहैं तारी

    जाएउ ना कहुँ मानउ बात हमारी

    जइसे तइसे हम रहि लेबै कहुँ खाए बिन खाए

    कइसे निपटी मुल लरिकन का अइसे बिना खवाए

    दूधु बूँदु तौ दूरि धरौ फिरि, कौनु लइहै तरकारी

    जाएउ ना कहुँ मानउ बात हमारी

    खेत पात सब कौनु बचइहै कौनु चरहै गाईं

    रोजु-रोजु ग्वाबरु उठवावइ अइहै कोई नाईं

    कइसे पानी भरि भरि लइबो नलु नाहीं सरकारी

    जाएउ ना कहुँ मानउ बात हमारी

    साहूकार सेंठि जेतने बिन मतलब कुछु ना द्याहैं

    भरि टकटकी अइस देखइ जस आँखिन मा धरि ल्याहैं

    जौनुइ देखिहइ हमइ अकेले नीकि नजरि डारी

    जाएउ ना कहुँ मानउ बात हमारी

    ऊँच नीच गर कुछु हुइगा तौ फिरि कबहूँ ना सुधरी

    गयेन अगर थानेउ कहियाँ तौ उनका कुछु ना बिगरी

    अइहैं गर कहँ पुलिस दरोगा वइउ सुनइहैं गारी

    जाएउ ना कहुँ मानउ बात हमारी

    घरु होतो तौ बात अलग है टूटि गयी हैं टटिया

    कइसे ख्याल अकेले रखिबै चंचल लरिका बिटिया

    थर-थर देह कँपइ हमरी जब आवइ यादि निठारी

    जाएउ ना कहुँ मानउ बात हमारी

    रोकिहउ बहुत मगर मन डोली देखि बदन अधनंगे

    हम जानिति हन रपटि परे पर करिहौ हर हर गंगे

    हुअन से अइहौ तब अइहै वह लाइलाज बीमारी

    जाएउ ना कहुँ मानउ बात हमारी

    स्रोत :
    • पुस्तक : सिरका (अवधी गीत संग्रह) (पृष्ठ 13)
    • रचनाकार : जगजीवन मिश्र ‘जीवन’
    • प्रकाशन : भगवत मेमोरियल इंटर कॉलेज समिति, मिश्रिख, सीतापुर
    • संस्करण : 2015

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