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हे लिअ ' ई धधराक चेरा

हरेकृष्ण झा

अन्य

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हरेकृष्ण झा

हे लिअ ' ई धधराक चेरा

हरेकृष्ण झा

और अधिकहरेकृष्ण झा

    नहि बाँचत प्रान आब,

    एना मे किन्नहु

    ने बाँचत प्रान आब।

    आदंक

    हमरा भीतर

    पैसि गेल अछि!

    तमतम करैत रौद मे

    मडुआ रोपैत मुसहरक

    गुम्मीक आदंक!

    जेठक सुखाएल खेत मे अपस्यांत भेल

    कोदारि सँ चालि चालि

    मडुआ रोपैत मुसहरक

    घनघोर गुम्मी;

    घमौड़ी सँ सोहरल

    घाम सँ तरबतर भेल

    कारी झामरि गुम्मी;

    गुमसुम खापड़िकारी

    बजरगुम्मीक आदंक

    हमरा भीतर

    चकरी मारि क'

    बैसि गेल अछि!

    पेट मे साँझक साँझ सँ

    अहुरिया कटैत भूख नेने,

    मोन मे नेनाचिलकाक भूखक

    फकसियारी नेने,

    हरेक छन भूखक अन्हरकूप

    मे डूमल चल जाइत,

    चिक्कट बिस्टी पहिरने मुसहरक

    भयाओन गुम्मीक आदंक

    हमरा भीतर

    गड़िया क'

    बैसि गेल अछि!

    सोन्हि मे जनमल

    एँड़-घरमेच तर मे पोसल,

    जुगक जुग सँ बेनगन

    कारी भुजंग गुम्मीक आदंक,

    मुसहर-पैरक दरारि जकाँ

    मुँह बौने,

    भादबक निसबद रातिक ढ़ेँग भ'क'

    हमरा भीतर

    कुसोथरि

    मारि नेने अछि!

    कोना बाँचत प्रान?

    ढ़ेँग भ'क' बैसल

    गुम्मीक आदंक

    चपने चल जा रहलए

    पोर-पोर केँ,

    मुसरा तक केँ,

    एना मे कोना बाँचत प्रान?

    कहाँ छै, कहाँ कतौ छै,

    खिच्चा हरियरीक

    छोट छिन कियारी

    एहि मुसहरक लेल

    कहाँ कतौ छै?

    पिरौँछ हरियरीक

    नान्हियो टा कोला

    कहाँ कतौ छै?

    तैँ त' नञि सुझै छै,

    कचोर हरियरी

    एहि मुसहर केँ

    तैँ त'

    नञि सुझै छै।

    हमरा भीतर मुँह बौने

    आदंकक ढ़ेँग

    भूखक अन्हरकूपक

    अन्हार बोकरने

    चल जा रहलए,

    सुरसा जकाँ बढ़ैत

    अन्हरआदंकक पहाड़ भेल

    चल जा रहलए!

    हमरो कहाँ सुझैयै,

    कंच हरियरी

    ओइ मुसहरे जकाँ

    हमरो कहाँ सुझैयै!

    अन्हरआदंकक पहाड़

    छाती पर

    असवार भेल

    चल जा रहलए,

    प्रान केँ मेचने

    चल जा रहलए।

    एना मे

    कोना बाँचत प्रान?

    जुगक जुग सँ

    ओइ मुसहरक कुहरब जकाँ

    हुकर' लगिते छी,

    अबतब मे

    होइते छी,

    कि सकदम

    भ' जाइत छी!

    जेना अतमा मे धुतहू

    बाजि उठल हो!

    जेना नादक धधरा

    धुधुआ उठल हो!!

    तुमुल अभय मे

    केओ कहि रहलए,

    मुक्ति-पुरुख जकाँ

    ब'ल दैत भरोस दैत

    केओ कहि रहलए:

    “एना अनधैर्ज नञि होउ यौ,

    एना हिया नञि हारू,

    एतेक जल्दी थस

    नञि लिअ' यौ।

    बाँचत अहाँक प्रान,

    बाँचत बाँचत,

    बँचबे टा नञि

    बढ़बो करत बढ़बो करत।

    बढ़ैत बैढ़त

    सुर्ज तलिक जाएत,

    चनरमा तलिक जाएत,

    भोरुकबा तारा जाँकित फूल

    फुलैत अहाँक प्रान मे,

    सिनुरिया लिच्चीक घौरछा सभ

    सतभैँयाँ जाँकित

    लटकत अहाँक प्रान मे;

    एना अनधैर्ज नञि होउ यौ

    एना हिया नञि हारू,

    एतेक जल्दी

    थस नञि लिय' यौ।

    सधने अपन प्रान पर

    अन्हरआदंकक पहाड़ केँ,

    ओहि गर्जनक गदमीसान मे

    अपन कण-कण सँ साकांच भेल

    हम सुनि रहल छी-

    धधरा जकाँ धुधुआइत

    ओहि ललकब केँ

    हम सुनि रहल छी:

    हम छी इतिहासक हाथपएर,

    हम छी मनुक्खक हाथपएर,

    हम छी अहाँक प्रान अहाँक अतमाक

    हाथपएर!

    हमरे बले चलैए इतिहास,

    हमरे बले जिबैए मनुक्ख,

    हमरे बले अहाँक प्रान अहाँक अतमा

    मे जान कि इंजोत कि ऐलफैल

    कि अकास कि बसात कि फूलपात!

    अन्हरआदंकक पहाड़ तर

    जे अहाँ

    पिचड़ा भेल चल जाइ छी,

    कुहरैत काहि कटैत

    सदिखन जे अबतब मे रहै छी,

    से एही कारन

    जे जुगकजुग सँ हमर प्रान

    गुम्म रहल अछि सुन्न

    रहल अछि पूसक हेमाल राति मे

    घोकड़ी मारने

    हमर देह जाँकित

    अकड़ल रहल अछि।

    अन्हरआदंकक पहाड़

    जे अहाँकेँ

    दरमेसने जा रहलए,

    एना नहि जे

    से एही कारन

    जे आइ तलिक

    अहाँ एको पल

    हमरा दिस तकली नञि,

    अपने मे लागल रहली,

    अपन छोट-छोट ओछ-ओछ

    मनसूआ सब मे

    बाझल रहली,

    अपन नस-नस मे डाहक

    एना नहि जे

    अगड़ाही लगबैत रहली,

    बनैया भोगक चभच्चा मे

    बोहिआइत रहली,

    टाका कि नामक हाहुत्तीक

    दासमदास भेल रहली।

    यदि आइ तलिक कहियो अहाँ

    प'ल उठा क' हमरा दिस

    तकने रहिती,

    हमर रकटल खरकट्टेल जिनगी

    केँ गुनने रहिती,

    हलात नञि रहित अहूँक,

    तेरे दीनदुनिया रहित।

    मुदा से अहाँ नञि केली,

    ने तकर होसे है एखिनतो

    अहाँ केँ।

    मुदा हम जे इतिहासक

    हाथपएर छी,

    अहाँक अतमाक हाथपएर छी,

    भार है हमर कान्ह पर

    जे अहाँकेँ एकबेरी

    परबोधने जाइ,

    एकबेरी चेतौने जाइ।

    तैँ हम एली है अहाँ लग

    अहाँक आखरी बेर मे,

    जे एखिनतो कुछो नञि भेलैऐ,

    एखिनतो अहाँ सब कुछो

    सम्हारि सकै छी

    सुढ़िया सकै छी।

    जेना प्रान

    कनेक हल्लुक भ' गेल हो!

    जेना तुमुल नाद

    अन्हरआदंकक

    पहाड़ केँ

    टानि नेने हो!

    सहास क' क'

    प'ल खोलैत छी

    जे देखी जे चिन्ही

    जे के थिक जे हमरा

    आखरी बेर मे

    आँखि खोललकए,

    जीबाक हुबा देलकए,

    मुक्त होयबाक बाट

    देखौलकए!

    निधोख भ' क' सकांच भ' क'

    देख' लगैत छी

    मुदा किछुओ

    देखबा मे नहि अबैत अछि,

    केवल अन्हार केवल अन्हार

    सुनसान अन्हार केवल,

    ओहि मे धधरा जकाँ

    धुधुआइत ओहि नादक अनुनाद,

    आर किच्छु नहि।

    कनेक कालक बाद देखैत छी

    जे सिम्मरक फूलक दल जकाँ

    दहकैत दू टा आँखि

    लग आबि रहलए,

    जेना उतान भेल प्रान

    उठबा लए

    छटपटा रहलए!

    हे! ल'ग आबि गेल

    दूनू दहकैत आँखि,

    कारी धुत्थुर नँगधड़ँग पुरुख!

    के थिक के थिक?

    जेना कनेक चिन्हार हो!

    दहकैत आँखिक लाल आलोक मे

    देखबा में अबैत अछि

    चिक्कट बिस्टी कान्ह पर

    दू टा घट्ठाः

    के थिक

    के थिक?

    कि हमर गुनधुनक बीचे मे

    जेना धुतहू

    धुधुआ उठैए:

    “नञि चिन्हली ने हमरा,

    नञि चिन्हली ने हमरा!

    तैँ त' एना हुकरि रहल छी,

    तेँ ' एना अधमिर्रुत

    भ' गेल छी!

    अहाँ देखने छी हमरा -

    जेठक चंडलबा रौद मे

    मडुआ रोपैत

    देखने छी हमरा -

    अझक्के देखली,

    हमर गुम्मी सँ

    आदंक पैसि गेल

    अहाँक भीतर;

    मुदा तकर बाद

    ओइ आदंक तर मे

    अपंग भेल पड़ल रहली

    अहाँ,

    ओइ आदंकक खोधबेध

    नञि केली,

    हमर गुम्मीक खोधबेध

    नञि केली,

    बिटिया क' फरिछा

    बुझबाक जतन

    नञि केली,

    जे कोन अन्हरजाली तर मे

    जनमल हमर गुम्मी,

    तइ सँ जनमल आदंक

    जे अहाँक जान ल' रहल है।

    से जदि अहाँ केने रहिती,

    एना नहि जे

    से ऊहि जदि रहित अहाँ मे,

    उठि क' सम्हरि क'

    ओइ अन्हरजाली मे

    पसाही लगेबा लए

    जदि छटपटाइत रहल

    रहिती अहाँ,

    एना काहि कटैत

    नञि रहिती।

    मुदा भांगक गोला मे मौगीक

    खोपा मे छिटकी लगेबा मे

    उठापटक करबा में अंडबंड

    अनापसनाप ही ही हा हा मे

    अहाँ लागल रहली,

    प्रान अहाँक आदंकक पहाड़ तर

    बफारि कटैत रहल

    कटैत रहल।

    मडुआ रोपैत काल माटि तर मे

    पओली जे बात

    से कहि रहल छी :

    हमरा आउरक नँगधड़ँग हाथपएर

    एक दिस,

    बक्कस सन्नुक अनमारी

    सब मे राखल भरना बदलेन

    केबाला बेनामीक

    जलिया फरेबी

    कागज पत्तर दोसर दिस;

    एइ सँ जनमल

    सोँटा गँड़सा बन्नुक टैंक

    खाकी पोसाक लाल टोपी

    धपधप चाँगा खादी धोती-कुरता

    बड़का चानन-ठोप पतरा-पुरान

    तिर्थबर्थ धरमकरम;

    पीरी लागल चर्बी लागल

    जबका लागल सोनित लागल

    एकबार पिहानी फकड़ा,

    फुइसक नोनीफुफड़ी लागल रेडियो

    मोतियाबिन्द लागल कैमरा,

    घून लागल स्कूल कलेज

    दिबाड़ लागल सनसथा,

    खाउँ खाउँ करैत डाउँ-डाउँ करैत

    आफिस

    टाकाक लकबा मारल आला:

    है अन्हरजाली

    जइ तर मे जनमल हमर गुम्मी,

    जइ सँ जनमल आदंक,

    जे अहाँकेँ कुहरा रहल है,

    अहाँक प्रान घिचने

    जा रहल है!

    ओ! अहाँ

    छगुन्ता मे पड़ि गेली है-

    जे हम- हमरा जे अहाँ

    गुम्मीक ढेँग

    देखि आयल रही-

    से एना! एना हमर उनटपुनट

    कोना भ' गेल!

    एना नहि जे

    की जादूटोना?

    नञि यौ, जादूटोना नञि;

    जखनी अहाँ आदंकक पहाड़ तर मे

    हाथ पर हाथ देने

    हुकरि रहल छली,

    तखनी हम सुखैल खेत मे

    मडुआ रोपैत काल

    जेठक चंडलबा रौदक

    ताबड़तोड़ चमेटा

    पीठ पर सहि

    रहल छली।

    कोदारि सँ चालि - चालि

    औँठा सँ गाड़ैत-गाड़ैत

    मडुआक बीया केँ

    औँठा हमर लहरि

    रहल छल,

    पेट मे अहुरिया कटैत भूख

    मोन मे औनाइत

    नेनाचिलकाक भूखक

    फकसियारीक कारन

    एँडी सँ टिकासन तलिक

    हम बाहर भीतर

    भकभका रहल छली।

    फेर एना भेल जे

    सौँसे टोलक सौँसे गामक

    सौँसे परोपट्टाक भूख,

    साँझक साँझ

    मासक मास

    जुगक जुगक भूख,

    एना खुरहाछी काट' लागल

    हमर मोन मे,

    कंटिरबा कंटिरबीक

    भूखक फकसियारी

    एना आहुर काट' लागल

    हमर प्रान मे,

    जे भेल

    जँ कुछो नञि करब

    तँ बिच्चे सँ फाटि जाएब

    दरकि जाएब

    नञि बाँचब

    नजिएं टा बाँचब।

    कि तखिनते!

    बीयाक जड़िक संग

    औँठा जे गेल छल माइट तर,

    तइ मे

    राहड़िक दानाक बराबरि

    अभरल कुछो-

    हम जेना

    सुनगि उठली!

    भेल जे कुच्छो

    गेल है प्रान मे औँठा बाटे

    बुटटी-बुटटी केँ सुनगबैत!

    आब बुझै छी,

    जे दाना-जे दाना

    आगिक मरम छैल!

    ओकर बाद

    बीयाक जड़िक संग

    माइट तर मे जाइत

    अपन औँठा सँ

    हम देसकोस समयसाल

    दीनदुनिया केँ

    छुबैत-गुनैत रहली,

    आगिक दाना

    हमर प्रान मे बढ़ैत बढ़ैत

    लाल टरेस

    दाड़िम भ' गेल,

    फेर लाल टरेस

    तरकून,

    जे फेर बढ़ैत-बढ़ैत

    माघक अन्हरिया मे धुधुआइत

    ओइधक

    घूर भ' गेल।

    धधकैत रहल

    घूर हमर प्रान मे,

    दिन चारिमेक

    सतरह अठारह गो कहकह

    ओइध एक्के बेरी

    धाह सँ फाटि उठल

    तरंग उठल-

    ओइधक घूर

    जेठक धधकैत दिन

    भ' गेल

    जाहि मे अपस्यांत भेल

    मडुआ रोपैत

    हमरा देखने रही।

    “...त भितरे-भीतर हम

    जेठक धधकैत दिन

    भ' गेल छी...

    हमर आँखि मे

    कहकह करैए

    सिम्मरक फूल,

    धधराक धुतहू

    धुधुआइऐ हमर कंठ मे...

    बेसी की कहब अहाँ केँ

    बेसी की कहब,

    बेर बितल

    चल जा रहलए,

    बेर बितल चल

    जा रहलऐ ...

    हे लिअ',

    अहाँकेँ हम

    आमक सुखैल चेराक बराबरि

    अपन धधरा दै छी-

    हे लिअ' धधराक चेरा,

    एइ सँ अन्हरआदंकक

    पहाड़ केँ

    बिच्चे सँ

    फाड़ि दिअ'!

    आब बढ़ाउ

    अपन हाथ-

    धधराक अपन गफ्फा सँ पकड़ क'

    अहाँ केँ

    ठाढ़ केँ' दी

    उतुंग क' दी!

    हे लिअ'-

    धधराक अपन तरहत्थी

    अहाँक बीच तरहत्थी पर

    राखि देल हम!

    आब अहाँ बलबंत भेली,

    आब अहाँ प्रानमंत भेली,

    आब हमर हितू

    भेली अहाँ!

    मडुआ रोपैत काल

    देसकोस समयसाल

    दीनदुनियाक सत्त

    जे माइट बाटे औँठा बाटे

    पैसल हमर प्रान मे,

    से आब हम कहब अहाँ केँ।

    डिगरीक फुदना लगौने,

    पोथीक मोटरी

    माथ पर धेने,

    एना नहि जे

    हरेक छन मोनेमोन

    बिलेँत मे रहैत

    अहाँक मास्टर आउर

    नञि कहता नञि

    कहने हेता अहाँकेँ-

    तैँ कान द' क' सुनू अहाँ,

    प्रान मे जुगता क'

    राखू अहाँ,

    ताहि मोताबिक

    जीबू अहाँ:

    जाबत तलिक हमरा आउरक

    हाथपएरक नामे

    केबाला नञि हैत ओतेक भुइमक

    जतेक केँ उपजेबाक बुत्ता

    छै एकरा मे-

    ताबत तलिक अहूँ आउरक जिनगीक

    कोनो ठीक नञि

    कोनो ठीक नञि;

    जाबत तलिक अँगोरा

    धधकैत रहत

    हमरा आउरक पेट मे,

    ताबत तलिक अहूँ आउरक

    कोनो ठीक नञि

    कोनो ठीक नञि:

    कहियो नीकनिकुत

    कहियो रुखसुख

    कहियो उपासेउपास;

    जाबत तलिक

    हमरा आउर नाँगट,

    ताबत तलिक अहूँ आउरक

    कोनो ठीक नञि

    कोनो ठीक नञिः

    कहियो लहकचहक

    कहियो

    लाजो बचैब मोसकिल;

    जाबत तलिक हमरा आउरक मोन मे

    नित्तह फकसियारी

    नित्तह झौहरि,

    ताबत तलिक अहूँ आउरक

    कोनो ठीक नञि

    कोनो ठीक नञिः

    हँसी कम्मेकाल

    खुसी कम्मेकाल

    बेसीकाल कनाखिचिये;

    जाबत तलिक बात बात पर

    हमरा लातजुत्ता

    हमरा गारिमारि,

    ताबत तलिक अहूँ आउरक

    कोनो ठीक नञि

    कोनो ठीक नञिः

    बात बात पर अहूँ आउर बेपानि

    अहूँ आउरक गंजन;

    जाबत तलिक हमरा आउर

    आखरक लेल खेखनल,

    ताबत तलिक

    अहूँ आउरक

    कोनो ठीक नञि

    कोनो ठीक नञि:

    कोइ कोइ अखरकट्टू

    कोइ कोइ सिलपट्टे;

    जाबत तलिक

    हमरा आउरक भीतर गुम्मी

    आदंक अन्हार,

    ताबत तलिक

    अहूँ आउरक भीतर गुम्मी

    आदंक अन्हार;

    जाबत तलिक

    हमरा आउरक प्रान टिरुऐल,

    ताबत तलिक

    अहूँ आउरक प्रान

    मौलैल लटुऐल;

    जाबत तलिक हमरा आउर

    कियो नञि कहीँक नञि,

    ताबत तलिक

    अहूँ आउर कियो नञि

    कहीँक नञि...

    “मडुआ रोपैत काल

    औँठा तरजनी सँ

    समयसालक माटि तर मे

    गहल जे सत्त

    से ई,

    जे जाबत तलिक

    हमरा आउरक बाँहिक नामे

    केबाला नञि हएत भुइमक,

    ताबत तलिक हमरा आउरक जिनगी

    जिनगी नञि

    जिनगी जाँकित कुछो,

    अहूँ आउरक जिनगी

    जिनगी नञि

    जिनगी जाँकित कुछो,

    सगर जिनगी

    जिनगी नञि

    जिनगी जाँकित कुछो,

    जेना तेना जे से

    कुछक कुच्छो।

    खूब जुगता क'

    समधानि क'

    राखि लिअ'

    एइ सत्त केँ प्रान मे,

    समयसालक एइ मरम केँ

    प्रान मे,

    एकरा अपन जीबाक चर्चा

    मे अँगेज लिअ':

    तखिनते टा उगरास,

    आन कोनो तरहेँ नञि

    आन कोनो तरहेँ नञि।

    कबुलापाती जन्तर-मन्तर धूप-दीप

    कोनो काज नञि देत;

    बात बात पर कपार केँ कोसनाइ

    पछिला जनम केँ कोसनाइ

    कोनो काज नञि देत

    कोनो काज नञि देत;

    नीक स' नीक जोतखी

    सँ दिन तकबा क' निकलू

    कुछो नञि हैत

    कुछो नञि हैत;

    हमर जे दसा रहलऐ

    जुगक जुग स',

    औतै स' ओही स'

    सगर जिनगी मे मिर्तजोग,

    सब दिन सब दिस दिगसूल!

    हे लिअ',

    छिटटा भरि राहड़ि अहाँ लिअ',

    आगिक मरमक संग

    समयसालक एइ मरम केँ

    बन्न क'क' एकेक गो दाना मे,

    निकलि जाउ संगीसाथी हीतमीतक संग

    सगर देस मे,

    एकेक गो दाना

    एकेक गोरेक प्रान मे

    टोभने आउः

    हमर औंठाक भकभकी

    नेने अपन औंठा मे,

    टोभने आउ देसक एकेक गो प्रान मे

    समयसालक एइ अगिन-मरम केँ।

    एही सँ अहाँकेँ उसास,

    एही सँ अहाँक जिनगी मे आस,

    एही सँ अहाँक जिनगी सकारथ।

    अगिनदाना सत्तक

    हरेक प्रान मे बढ़ैत बढ़ैत

    जेठक बलवंत रौदक

    धुधुआइत दिन भ' जैत

    जइ मे मडुआ रोपैत

    हमरा देखने रही...

    “आब जे ओहने दिन मे ओहिना

    मडुआ रोपैत

    देखी हमरा,

    ते जुनि बुझब

    जे गुम्म छी हम सुन्न छी हम-

    हम गहीँर गहीँर गहीँर भ'क',

    पिरथीक कोखि मे बैसि क',

    गुनैत रहब गुनैत रहब-

    जे धरतीक भीतर धरतीक ऊपर

    एतेक पानि एतेक पानि

    पानिक अम्बोहि,

    तखिन एइ खेत मे

    पानि किऐ नञि?

    किऐ हमर औँठा मे भकभकी,

    किऐ हमर जिनगी

    मे भकभकी?

    अन्नक अमार धरती पर

    धरतीक भीतर,

    तखिन हमरा आउरक पेट मे

    अन्न किऐ नञि?

    सूतक अलेल धरती पर

    धरतीक भीतर,

    तखिन हमरा आउरक देह पर

    बस्तर किऐ नञि?

    कते रमन-चमन सोभा-सुन्नर

    एइ जहान मे,

    तखिन हमरा आउरक प्रान मे

    रमन-चमन किऐ नञि,

    हमरा आउरक अतमा मे

    सोभा-सुन्नर किऐ नञि?

    “मडुआ रोपैत काल

    औँठा सँ गुनैत रहब

    हम सब,

    ताहीकाल सगर देस मे

    अनगिनित धुधुआइत प्रान

    खेत खाम मे काज करैत काल,

    कलम चलबैत पोथी पढ़ैत काल,

    मैक पकड़ैत फोटो खिचैत काल,

    अपन-अपन माथ औँठा सँ

    गुनैत रहत इहे सब...

    एना हएत एक दिन

    जे हमर औँठा मे अहाँक औँठा मे

    हमर प्रान मे अहाँक प्रान मे

    अनगिनित आर औँठा मे प्रान मे,

    एक्के बेरी माइट बाटे कागत बाटे

    लोह बाटे ताम बाटे,

    कोयला होइत अबरख होइत काँच होइत,

    पैसत ललकैत आसमर्द-

    जे नञि आब नञि आब एको छन

    आर सहाज नञि हएत-

    हमरा चाही हमरा आउर केँ

    सब कुछो चाही :

    धानक सीस

    गहुमक बाइल

    बाँगक गाछ

    झकझक बास;

    अकास फूलपात

    गान गियान

    मरेम सिनेहः

    हमरा आउर केँ सभ कुछो चाही

    आब एको छन आर

    सहाज नहि हएत ...

    कि तखनहि उठत लहास

    हमरा आउरक अहाँ आउरक

    औँठा सँ प्रान सँ

    जेठक ओहि दुफरियाक धरती

    सँ उठैत लहास जकाँ

    जइ पर हलकान भेल

    मडुआ रोपैत

    देखने रही हमरा;

    उठत लहास सगर देस मे

    जारत जारत-

    खाक करत ओइ अन्हरजाली केँ

    जकरा द'

    एखिनते हम कहली अहाँकेँ;

    छाउर हैत छाउर हैत

    गुम्मी आदंक

    जकर अन्हरपहाड़

    अहाँ केँ कूहि रहल छल

    कुहरा रहल छल...

    फेर ओइ छाउर पर

    चलैब हम टरेक्टर

    अपन छातीक धरधरी नाहित

    धरधराइत

    अपन बाँहिक नामे

    केबाला भेल खेत मे,

    पटाएब ओकरा

    अपन हिया जाँकित

    धमकैत बोरिंग सँ...

    राखब ओतबेक हाल

    ओतबेक हाल

    जते हमरा चाही,

    जते धान मडुआक दाना केँ

    चाही

    जिनगी मे हुलकी मारबाक लेल;

    तखिन चलैत रहत किलकाबिर्त

    हरियरीक

    ओइ खेत मे ...

    तखिन

    हरियरी सुझबाक कथे कोन,

    हमर अहाँक पिपनी

    बनि जैत हरियरीक पेंपी,

    डिम्हा मे मारैत रहत कुलाँच

    कचोर पठरू सदिखन...

    तीसीक फूल जाँकित

    बिहुँसैत असमानक निचाँ मे,

    पाकड़िक सीर बनल

    बाँहि सँ टरेक्टर चलबैत

    जखिन देखब हमरा,

    माथ पर ललका गमछा

    फहरबैत

    एइ जहानक

    गानबजान भेल-

    तखिन हमर त' कथे कोन,

    अहूँक अतमा मे सीसोक गाछ

    नाहित उछाह

    पाँखि फड़फड़बैत

    छू लेत सातम अकास केँ,

    हमर अहाँक साफसूफ

    घर-आँगन मे,

    साफसूफ मोनप्रान मे,

    इजोत बसात

    बोहियाइत रहत

    बोहियाइत रहत।

    एकेक गो आँगन मे

    माँझे ठाम

    एक गोर जुआन

    महुक गाछ एक्के संग

    सरदर बढ़ैत चल जैत

    अकासक ओइ पार तलिक,

    गढ़गर लाल बुन्न अपन

    एना नहि जे

    नहुएं-नहुएं

    चुअबैत रहत...

    “देख लेबै अहाँ

    जे अहाँक अतमा मे,

    जेना कि बाकी आउर गोरेक

    अतमा मे,

    होइत बिहानक

    सिहकैत बसात सँ

    सिंगरहारक पथार

    लगैत रहैत है कि नञि,

    सगर देस मे रोजीना

    ललका धान सँ भरल

    डगरा नाहित सुर्ज

    उधकैत उगै छैथ कि नञि!

    से मुदा तखने,

    जखन हमरा आउरक संग

    पुरी अहाँ

    अपन धरम मानि क'

    अपन करम मानि क'...

    स्रोत :
    • पुस्तक : एना त नहि जे (पृष्ठ 159)
    • रचनाकार : हरेकृष्ण झा
    • प्रकाशन : रक्तमंजरी प्रकाशन
    • संस्करण : 2006

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