आसमर्द
दलमलित भेल अछि सभ किछु
एहि राति मे,
कटि रहल अछि
काह जीवनक।
ने अपन सम्हार मे
अछि इजोरिया
ने आकाशक सम्हार मे,
पृथ्वी अपनहि छथि ओलरल
ओकर अनन्त हिलकोर सँ।
एतेक उधकैत अछि
आमक गाछ सभ
निछक्का मधुक
उमतल आवेग सँ,
एतेक सहजोर
भ' गेल अछि
ओकर सभक निसाँस,
जे दोमैत अछि
कलमबाग केँ,
दोमैत अछि तारमतोर!
मधुआयल फूही
तुबैत अछि कोन-कोन मे,
बुन्नी सभ
गुनगुनाइत अछि
ठारिपातक रोम-रोम मे।
उमकैत सुगन्धि
मचबैत अछि
ललछौँह रोर;
एतेक वेग सँ झमारैत अछि
गमक कण-कण केँ,
जे गनगन करैत
उनटैत- पुनटैत अछि
दिगंत।
ई बेलीक फूल सभ
उजहि क'
किएक एना झिकझोरैत अछि
एक दोसरा केँ
किलकैत?
ई हाँजक हाँज
अपराजिताक फूल
किएक एना झिलहरि
खेलाइत अछि
आकाशक एक छोर सँ
दोसर छोर धरि?
किएक एना सभतरि
महने जाइत अछि बसात
सुच्चा दूधक गाब?
खन एतय खन ओतय
भामरि दैत अछि
जुहीक अखलास,
जहँतहँ चकभाउर दैत अछि
केबड़ाक कलनाद?
किछु नहि,
डफराक थाप पर
आवाहन
कयलक अछि काल
एकहि संग राग बहार
आ खमाजक,
जे बजैत अछि
मातल आलाप मे।
आ जुटि रहल अछि
सभटा टुटल सीर
लोकक,
फेर सँ धँसि रहल अछि
जीवन मे:
फेर सँ उमड़ि
रहल अछि
जीबाक हुबा
शोणित मे।
किएक एना काहि कटितो
जिबैत चलि जाइत अछि लोक?
सैकड़ोँ तर्जनी अपन
उठबैत अछि आमक गाछ!
किएक एना गंजन सहैत
चलि जाइत अछि लोक?
ललछौँह आसमर्द
करैत अछि कलमबाग!!
- पुस्तक : एना त नहि जे (पृष्ठ 91)
- रचनाकार : हरेकृष्ण झा
- प्रकाशन : रक्तमंजरी प्रकाशन
- संस्करण : 2006
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