महल असीम नहीं है।
दीवारें, परकोटे, बाग़ीचे, भूलभुलैयाँ, सीढ़ियाँ, बारजे, मुँडेरें, किवाड़,
गलियारे, गोल या आयताकार आँगन, छत्ते, कटान, हौज़, बैठकें, कक्ष,
बिस्तर-कोष्ठ, पुस्तकालय, अटारियाँ, भूमिगत क़ैदख़ाने, सीलबंद
कोठरियाँ और तिजोरियाँ तादाद में गंगातट पर बिछी रेत से कम नहीं हैं।
लेकिन तब भी उनकी एक सीमित संख्या है। छतों से, सूर्यास्त की ओर,
बहुत-से लोग भट्ठियाँ, कारख़ाने, अस्तबल, नौकागार और दासों की झोपड़ियाँ
देख सकते हैं।
किसी भी व्यक्ति को महल के एक अत्यंत सूक्ष्म हिस्से से आगे जाने की
अनुमति नहीं है। कुछ लोग सिर्फ़ तहख़ानों से अवगत हैं। हम कुछ चेहरों को,
कुछ आवाज़ों-कुछ शब्दों को तो जान या पकड़ सकते हैं, लेकिन हम जो
ग्रहण करेंगे वह सूक्ष्मतम होगा। सूक्ष्म और मूल्यवान एक साथ।
संगमरमर की पट्टी पर छेनी से जो तिथि खुदी हुई है, और जो ख़सरा-खतौनी
में भी दर्ज है, हमारी अपनी मृत्यु के बाद की है। अगर हमें कोई चीज़ छूती
नहीं है; न कोई शब्द, न कोई लालसा, न कोई स्मृति, तो हम पहले ही मरे हुए हैं।
हमें पता है कि हम मरे हुए नहीं हैं।
- पुस्तक : रोशनी की खिड़कियाँ (पृष्ठ 172)
- रचनाकार : होर्खे लुइस बोर्खेस
- प्रकाशन : मेधा बुक्स
- संस्करण : 2003
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