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लेखक की मौत

lekhak ki maut

ऋद्धि गिरि

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ऋद्धि गिरि

लेखक की मौत

ऋद्धि गिरि

और अधिकऋद्धि गिरि

    दिवाली जैसे दिए जलाओ

    होली जैसे गुलाल उड़ाओ

    बैठे क्यों हो?

    उठो भाई जश्न मनाओ

    जश्न मनाओ,

    संगीन साज़िश थी

    हादसे का शिकार, सफ़ेद चादर ओढ़े लेटा पड़ा है

    जमा सारे महापुरुष है, 

    मोटे-मोटे आसूँ टपक रहे थे, वैसे ही जैसे मगरमच्छ के होते है

    दरोगा बोला,

    बला टली, जब देखो, धमक पड़ता था

    हर केस की तहक़ीक़ात में यह पहले ही टपक पड़ता था

    पुलिस हम है, लेकिन इंवेस्टिगेशन ये हमारी करता था

    हादसे को चार दिन हुए, अब तक मुजरिम पकड़ा क्यों नहीं 

    पकड़ा तो जेल में दिखता क्यों नहीं,

    दिखता है, कोर्ट में पेश क्यों नहीं होता

    बार-बार मेरी जेब भी था टटोलता,

    जो कुछ मिल जाता था, वो डेयरी में था नोट करता

    अगर ये यहाँ होता, तो मैं जेल में होता

    बोलता मुझे बचाओ मुझे बचाओ,

    लेकिन

    बला टली, बला टली, जश्न मनाओ, जश्न मनाओ

    नेता बोला,

    तू अपनी छोड़, मेरी सुन

    बार-बार मेरी फ़र्जी असली डिग्री पर सवाल था करता

    Accountant कोई और था लेकिन सरकारी पैसे का हिसाब ये था रखता

    सड़क, ब्रिज, स्कूल, अस्पताल, जाने कौन-कौन से काग़ज़ लिया था फिरता

    मेरे हर scam था इसको पता

    कोशिश भी की मैंने कि लेले तू भी पैसे, मुझे मत सता

    कैसे छोड़ेगा मेरा पीछा, मेरे भाई, तू ही मुझे बता!

    खोली डायरी, पन्ने पलटे, सुना दी इसने मुझे भी जेल को सजा!

    अगर ये यहाँ होता, तो मैं जेल में होता

    बोलता मुझे बचाओ मुझे बचाओ 

    लेकिन

    बला टली, बला टली, जश्न मनाओ, जश्न मनाओ

    व्यापारी बोला

    तू अपनी छोड़, मेरी सुन

    कला बाजारी, पकड़ ली थी इसने मेरी

    इसे पता थी मेरी टैक्स की चोरी

    लिख ली थी इसने मेरे अनाज, पेट्रोल, मिठाई, दवाई, शराब और जाने क्या क्या! की हेरा-फेरी

    चुपके से देखी इसकी डायरी

    पता चला

    अगर ये यहाँ होता, तो मैं जेल में होता

    बोलता मुझे बचाओ मुझे बचाओ

    लेकिन

    बला टली, बला टली, जश्न मनाओ, जश्न मनाओ,

    जनता पहुँची, हैरान परेशान,

    क्या हुआ है, किसका हुआ है, क्या नुकसान?

    किसकी शोक सभा में हो रही है, हसीं ठिठोली 

    खोली डायरी, पता चला, क्यों मन रही है, दिवाली होली

    आख़िर सबके पापों पर पड़ा पर्दा 

    जाते-जाते भर गया था भारस्ताचारियों की झोली

    एक क़लम, एक झोला, एक डायरी, सत्य का सिरमौर

    झूठ की सौत 

    हुई थी एक लेखक की मौत।

    स्रोत :
    • रचनाकार : ऋद्धि गिरि
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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