पतंग

patang

आलोकधन्वा

और अधिकआलोकधन्वा

     

    एक

    उनके रक्त से ही फूटते हैं पतंग के धागे
    और
    हवा की विशाल धाराओं तक उठते चले जाते हैं
    जन्म से ही कपास वे अपने साथ लाते हैं

    धूप गरुड़ की तरह बहुत ऊपर उड़ रही हो या
    फल की तरह बहुत पास लटक रही हो—
    हलचल से भरे नींबू की तरह समय हरदम उनकी जीभ
    पर रस छोड़ता रहता है

    तेज़ आँधी आती है और चली जाती है
    तेज़ बारिश आती है और खो जाती है
    तेज़ लू आती है और मिट जाती है
    लेकिन वे लगातार इंतज़ार करते रहते हैं कि
    कब सूरज कोमल हो कि कब सूरज कोमल हो कि
    कब सूरज कोमल हो और खुले
    कि कब दिन सरल हों
    कि कब दिन इतने सरल हों
    कि शुरू हो सके पतंग और धागों की इतनी नाज़ुक दुनिया
    बच्चों और चिड़ियों की आँखों की इतनी नाज़ुक दुनिया

    दो

    सबसे काली रातें भादों की गईं
    सबसे काले मेघ भादों के गए
    सबसे तेज़ बौछारें भादों की
    मस्तूलों को झुकाती, नगाड़ों को गुँजाती
    डंका पीटती—तेज़ बौछारें
    कुओं और तालाबों को झुलातीं
    लालटेनों और मोमबत्तियों को बुझातीं
    ऐसे अँधेरे में सिर्फ़ दादी ही सुनाती है तब
    अपनी सबसे लंबी कहानियाँ
    कड़कती हुई बिजली से तुरत-तुरत जगे उन बच्चों को
    उन डरी हुई चिड़ियों को
    जो बह रही झाड़ियों से उड़कर अभी-अभी आई हैं
    भीगे हुए परों और भीगी हुई चोंचों से टटोलते-टटोलते
    उन्होंने किस तरह ढूँढ़ लिया दीवार में एक बड़ा-सा सूखा छेद!

    चिड़ियाँ बहुत दिनों तक जीवित रह सकती हैं—
    अगर आप उन्हें मारना बंद कर दें
    बच्चे बहुत दिनों तक जीवित रह सकते हैं
    अगर आप उन्हें मारना बंद कर दें
    भूख से
    महामारी से
    बाढ़ से और गोलियों से मारते हैं आप उन्हें
    बच्चों को मारने वाले आप लोग!
    एक दिन पूरे संसार से बाहर निकाल दिए जाएँगे
    बच्चों को मारने वाले शासकों!
    सावधान!
    एक दिन आपको बर्फ़ में फेंक दिया जाएगा
    जहाँ आप लोग गलते हुए मरेंगे
    और आपकी बंदूक़ें भी बर्फ़ में गल जाएँगी

    तीन

    सबसे तेज़ बौछारें गईं भादों गया
    सवेरा हुआ
    ख़रगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा
    शरद आया पुलों को पार करते हुए
    अपनी नई चमकीली साइकिल तेज़ चलाते हुए
    घंटी बजाते हुए ज़ोर-ज़ोर से
    चमकीले इशारों से बुलाते हुए
    पतंग उड़ाने वाले बच्चों के झुंड को
    चमकीले इशारों से बुलाते हुए और
    आकाश को इतना मुलायम बनाते हुए
    कि पतंग ऊपर उठ सके—
    दुनिया की सबसे हल्की और रंगीन चीज़ उड़ सके
    दुनिया का सबसे पतला काग़ज़ उड़ सके—
    बाँस की सबसे पतली कमानी उड़ सके—
    कि शुरू हो सके सीटियों, किलकारियों और
    तितलियों की इतनी नाज़ुक दुनिया

    जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास
    पृथ्वी घूमती हुई आती है उनके बेचैन पैरों के पास
    जब वे दौड़ते हैं बेसुध
    छतों को भी नरम बनाते हुए
    दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए
    जब वे पेंग भरते हुए चले आते हैं
    डाल की तरह लचीले वेग से अक्सर
    छतों के ख़तरनाक किनारों तक—
    उस समय गिरने से बचाता है उन्हें
    सिर्फ़ उनके ही रोमांचित शरीर का संगीत
    पतंगों की धड़कती ऊँचाइयाँ उन्हें थाम लेती हैं महज़ एक धागे के सहारे
    पतंगों के साथ-साथ वे भी उड़ रहे हैं
    अपने रंध्रों के सहारे

    अगर वे कभी गिरते हैं छतों के ख़तरनाक किनारों से
    और बच जाते हैं तब तो
    और भी निडर होकर सुनहले सूरज के सामने आते हैं
    पृथ्वी और भी तेज़ घूमती हूई आती है
    उनके बेचैन पैरों के पास।

    स्रोत :
    • पुस्तक : दुनिया रोज़ बनती है (पृष्ठ 12)
    • रचनाकार : आलोकधन्वा
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2015

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