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कंधे पर धरा हाथ

kandhe par dhara haath

आनंद बहादुर

अन्य

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आनंद बहादुर

कंधे पर धरा हाथ

आनंद बहादुर

और अधिकआनंद बहादुर

    अभी चलते-चलते 

    मैं लगातार महसूस कर रहा हूँ

    कि मेरे कंधे पर 

    एक हाथ धरा हुआ है 

    अभी जब मेरे साथ

    कोई नहीं चल रहा है

    कंधे पर फिर भी धरा हुआ है 

    एक हाथ का स्पर्श 

    यह हाथ 

    एक बुझी हुई आग

    कि एक सुगबुगाती हुई आत्मा

    जो इस समय मेरे कंधे पर है 

    एक बहुत हल्के रखा हुआ हाथ है यह

    हाँ, यह स्पष्ट है

    यह हाथ

    कंधे से हवा की बातचीत जैसा है 

    मैं सुन सकता हूँ

    इस हाथ को

    गली में उतर आई साँझ की तरह

    जिसके साथ

    एक कोमल शीतलता भी उतरी है

    जैसे धीरे से सिर हिला कर 

    मुझे आश्वस्त कर रही हो 

    मगर अभी भी

    महसूस कर रहा हूँ कंधे पर 

    एक हथेली भर नर्म-सी गर्मी 

    यह तय नहीं है 

    कि हाथ को कंधे की ज़रूरत है

    या कंधे को हाथ की

    मगर इसी से निचुड़ कर रहा है

    हम दोनों के लिए 

    समय का बहुत सारा एहसास 

    हम दोनों

    ज़रूरत भर ही चल रहे हैं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : आनंद बहादुर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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