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कलकत्ता

kalkatta

आकाश वर्मा

अन्य

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आकाश वर्मा

कलकत्ता

आकाश वर्मा

और अधिकआकाश वर्मा

    कलकत्ता कोई शहर नहीं

    एक रूपक है

    किसी शहरी पहचान से अलग

    बांग्ला से उतरकर रोमन में लिखते-पढ़ते लोगों के बीच

    उड़ते और भागते भविष्य की चिंता में

    घुट रहे दिमाग़ों में

    इससे कहीं बहुत ही अलग बनावट है उनके पास

    थोड़ा-सा जी लेने

    थोड़ी-सी सांस खींच लेने

    और थोड़ा-सा, बहुत कुछ लेकर

    घर लौटने की चाहत रखने वालों के हृदय में

    इसे जानने की ज़रूरत है, अलग से

    यह शहर सबको सब कुछ नहीं देता

    लेकिन यह एकांत को जीने की भरपूर जगह देता है

    आज भी

    कोलाहल को समेटने का विस्तार भी

    देता है

    इस शहर को भ्रम नहीं है

    इसलिए यह अपनी गति पर है

    लेकिन लोगों को है

    उस भ्रम को भी जानने की ज़रूरत है

    बाकी शहरों की तरह यह शहर भी

    बहुतों को बहुत कुछ देने

    और बहुतों को बहुत कुछ देने के बीच

    उलझा रहता है

    जिसे जानने से ज़्यादा बताने की ज़रूरत है

    ज़रूरत है

    इस शहर को अपनी ही भीड़ से बचाने की भी

    बदलते हुए रंगीन आसमानों

    में उतरती परछाईयों के खोने से पहले

    टूटते असामयिक काँच के बोतलों से भी

    धुँए से

    राख से, आग से और

    ख़ून जैसी लाल दिखावटी कतारों से भी

    कुछ ख़ास तरीक़े से, निकालने की ज़रूरत है

    हालाँकि

    इसकी कमी में ही ख़ूबी है बहुत सारी मगर

    कभी कभी समझ नहीं आता तब

    जब यह बोलने की जगह चीखता है

    ख़ुश होने की जगह भटकता है

    रोने की जगह हँसता है

    बोलने की जगह चुप नहीं रहता, भुनभुनाता है

    और विचार करने की जगह गुनगुनाने लगता है

    मानने या कहने की ज़रूरत नहीं

    इस जैसे बहुत सारे शहर हैं इस देश में

    लेकिन जो चिंगारी यहाँ शुरू हुई

    और चारो ओर फैल गई, वह

    पीछे से लगातार बुझती चली आई

    किन्तु अंत में जब लौटकर आई

    तो यहीं कलकत्ता में भटक गई

    स्रोत :
    • रचनाकार : आकाश वर्मा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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