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कलाकार

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ज्योत्स्ना चन्द्रम्

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और अधिकज्योत्स्ना चन्द्रम्

    हाथक तूलिका...आ

    कलाकार-मोनक भावमे

    चलि रहल छै युगलबंदी

    एक-एक स्पंदनपर

    नृत्यमान छै तूलिका...

    जकरा संग

    स्पष्ट भऽ रहल छै किछु रेखा—

    कैनवसक रिक्त विस्तार कें

    बेधैत/बान्हैत सन आरेख

    लऽ रहल छै आकृतिक रूप—

    कोनो सपनाक

    कोनो कल्पनाक

    किछु टेढ़-टूढ़

    किछु सोझ-साझ

    कि तखने

    कलाकारक आँखिमे उतरि अबैत अछि

    घोघ तर सँ झलकैत

    पूर्णचन्द्र सन मुख,

    कजराएल आँखि,

    स्नेह-निमंत्रित करैत भरल-पूरल मुस्की...

    ...आ दुलहिनक आँखिमे

    अभरऽ लगैत अछि

    राग-अनुरागक सागर

    हिलकोर लैत मस्ती

    लजाएल सन खसल पल

    उमंगक सैंतल सन उल्लास...

    ...आ स्वप्नक विस्तार

    पसरऽ लगैत अछि जेना चहुँओर

    रत्नजटित तनिष्कक स्वर्णाभूषण

    जे रिझबैत आबि रहल छलै

    अबैत-जाइत रहरहाँ

    शो-केसक भीतर सँ—

    ओकर नहि भऽ सकलै

    जकरा कीनिकऽ पहिरा सकैत

    अपन सद्य: विवाहिता पत्नी कें

    एखन कैनवसक पोस्टरपर

    हीरा-मोतीक आभा सम्हरि रहल छै

    बेर-बेर

    ओकर आँखि-बीच चमकि रहल छै

    अपन कल्पना कें

    साकार होइत देखि कलाकार

    मुग्ध भऽ रहल अछि

    ओकर मानस,

    जेना उदाम अकासक कैनवस—

    मेघ-छारल/हल्लुक-गाढ़ रंग

    बनैत-बिगड़ैत आकार...

    मुदा,

    के थम्हलक तूलिका!

    किएक एके संग

    ढबकि गेल सभटा रंग!

    एक-दोसरपर चढ़ैत-कटैत

    लेभराइत सन

    अस्पष्ट करैत सम्पूर्ण परिदृश्य!

    तूलिका

    सहमि कऽ ठकुआ जाइत अछि

    पोस्टरपर सिरखार लैत रेखा,

    रेखासँ बनैत रूप

    अपूर्ण रहि गेल

    रूप, अरूप होइत झलकऽ लागल—

    महग साबित भऽ रहल बाबाक जिद्द

    पुतोहुक मुँह देखबाक सेहन्ता,

    एकटा पतिक अधिकार सँ

    गृह-प्रवेश लैत दायित्वबोध—

    मृतवत् बुझा रहल...

    मुक्त-लापरवाह हँसी

    मस्ती निश्चिन्तता...

    जेना, ओकर सम्पूर्ण चिन्तन कें

    विवशता

    गोलियाबऽ चाहैत अछि

    पूर्णत: अस्थायी नोकरीक लॉलीपॉप सँ

    जेना, फुसियाबऽ चाहैत अछि

    फेर तऽ,

    पत्नीक मुखर होइत आँखि कें

    परखैत विलम्ब नहि होइत छै

    ओहि आँखिक सोझाँ सँ

    पड़ाए लगैत अछि निछोह, जतऽ

    बिलमि कऽ सुस्तएबाक अदम्य आकांक्षा

    बहुत-बहुत समय पूर्व सँ

    ओकर अंदर अँकुरा रहल छलै

    मुदा,

    कतऽ सँ लाबए ओहि आँखिक लेल

    थोड़ेक सन सपना

    थोड़ेक सन इच्छा

    थोड़ेक सन धरती

    थोड़ेक सन बीज

    थोड़ेक सन तृप्ति,

    जे, बान्हि पाबए असंतोषक बान्ह

    जे, जाहि सँ उफनि ने सकए कोनो नदी

    जे, कखनो बहा ने लऽ जाए सभ किछु

    जेना—

    थोड़ेक सन सपना...

    थोड़ेक सन तृप्ति...

    यत्नपूर्वक

    कोनो दुलहिनक स्केचिङ्ग करैत

    अनाम सन एकटा कलाकार

    सहसा सिहरि उठैत अछि

    मोने-मोन बुदबुदा उठैत अछि...

    रूप लऽ रहल एहि चित्रमे

    कोलाज छलै अपूर्व

    यथार्थ कल्पनाक...

    इच्छा सामर्थ्यक...

    मुदा

    हारैत नहि अछि एको मिसिया धैर्य

    पोस्टर-पर-पोस्टर दगैत

    तन्मय भेल अपस्याँत

    स्वयं कें बिसरि रहल अछि

    कक्षा मे

    कैनवसक सोझाँ ठाढ़

    कल्पना कें

    अंतिम रूप दऽ रहल अछि

    लगैत अछि,

    कलाकार जेना कोनो

    युद्ध लड़ रहल अछि!

    स्रोत :
    • पुस्तक : समग्र ज्योत्स्ना (पृष्ठ 27)
    • संपादक : विभूति आनन्द
    • रचनाकार : ज्योत्स्ना चन्द्रम्
    • प्रकाशन : नवारम्भ
    • संस्करण : 2017

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