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काम से पूर्व जो शून्य था

kaam se poorv jo shunya tha

हर्षित मिश्र

अन्य

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हर्षित मिश्र

काम से पूर्व जो शून्य था

हर्षित मिश्र

और अधिकहर्षित मिश्र

    वह थी,

    मैं था—

    एक सघन मौन था जलराशि-सा,

    जिसमें विचारों की कोई लहर उठती थी।

    हम

    सृष्टि के पहले की कोई स्मृति थे शायद,

    ना शब्द थे,

    ना स्पर्श,

    ना ही उस अँधकार में आकांक्षा की कोई छाया थी।

    वह क्षण—

    जब 'कामना' ने आँखें खोली,

    मन में उठी पहली तरंग

    कि कोई हो— जो मेरा हो—

    वहीं से प्रारंभ हुआ प्रेम।

    प्रेम—

    जो केवल इच्छा नहीं,

    बल्कि वह पहली रौशनी थी

    जिसने अंधकार को यह बताया कि वह अँधकार है।

    तुम एक बीज थीं,

    मैं वह मिट्टी—

    जिसमें तुम्हारे होने की आहट से जीवन फूट पड़ा।

    हमारी कथा

    सूर्य की पहली किरण से भी पुरानी थी,

    जब रेत पर पहली बार कोई छाया बनी,

    उससे भी पहले की प्रतीक्षा थी मेरी।

    तुम्हारी आँखें नहीं थीं,

    फिर भी मैंने उन्हें सृष्टि की आँखों में खोजा—

    जैसे सुबह की पहली रौशनी में

    धरती जब मुस्कराती है,

    या किसी नवजात की पलकें जब पहली बार खुलती हैं,

    वहाँ मुझे तुम्हारी दृष्टि का आभास हुआ।

    तुम्हारी साँस नहीं थी,

    फिर भी हवा तुम्हारे नाम से महकने लगी थी।

    तुम्हारा होना

    एक गहरी उपस्थिति था,

    जिसमें मैं धीरे-धीरे

    प्रेम से पूर्ण होता गया।

    मैं

    उस आकाश के छोर पर टिका रहा

    जहाँ नीचे कुछ था, ऊपर—

    बस स्मृति की डोर से बंधा

    तुम्हारी अनुपस्थिति का आभास लहराता रहा।

    क्या कोई जान सकता है

    प्रेम का प्रथम कारण?

    क्या वह परमात्मा भी जान पाया

    जिसने हमें रचकर स्वयं को विस्मृत कर दिया?

    तुम

    सिर्फ़ मेरी नहीं—

    इस समूची सृष्टि की पहली कविता हो,

    जिसे किसी ऋषि ने नहीं लिखा,

    जिसे किसी ने पढ़ा नहीं—

    फिर भी सब कुछ उसी से उत्पन्न हुआ।

    और मैं जानता हूँ—

    तुम थीं...

    क्योंकि प्रेम के बिना

    सृष्टि संभव नहीं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : हर्षित मिश्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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