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झारखंड की लड़की

jharkhanD ki laDki

अलका सिन्हा

अलका सिन्हा

झारखंड की लड़की

अलका सिन्हा

और अधिकअलका सिन्हा

    जंगल-झाड़ कूदती, फलाँगती

    लकड़ी का गट्ठर पीठ पर बांधती

    स्कूल अहाते के बाहर

    थककर बैठी है

    झारखंड की एक लड़की।

    दो एकम दो, दो दूनी चार

    का गीत गा रही है

    पेड़ की टहनी से बाँध कर झूला

    पींग बढ़ा रही है

    धूसरित धरती पर

    उंगरी उकेर रही है

    से अनार,

    से आम टेर रही है।

    स्कूल अहाते के बाहर

    थककर बैठी

    झारखंड की एक लड़की।

    उसे ख़बर नहीं

    कि एजेंट ने भर दी है

    उसके पिता की जेब

    अब वह उसे नौकरी कराने

    दिल्ली ले जाएगा

    जहाँ औरों की ख़ातिर

    झाड़ते-बुहारते

    घर संवारते

    बिखर जाएँगे

    उसके छोटे-छोटे सपने।

    ज़रा गौर से देखो और पहचानो इसे

    यह भी तो मलाला ही है।

    वही मलाला—

    जिस पर हुए तालिबानी हमले के विरोध में

    समूची दुनिया एकजुट हो गई थी

    वही मलाला—

    जिसकी डायरी

    इंटरनेट आदि के जरिए

    दुनिया भर में पढ़ी गई थी

    वही मलाला—

    जिसके भाषण पर

    यूएनओ की सभा में

    देर तक

    तालियाँ गूंजती रही थीं।

    इस मलाला पर भी हो रहे हैं

    वैसे ही हमले

    जो उसके सोचने-समझने की ताक़त

    और कुछ कर दिखाने की इच्छा को

    नेस्तनाबूद कर रहे हैं।

    धूसरित धरती पर उंगरी उकेरती

    इस मलाला की डायरी को भी

    जरा ध्यान से पढ़ो

    जिसमें लिखी इबारत

    आम-अनार के छिलके-बोकले की तरह

    कूड़े के साथ बुहार दी जाएगी।

    काश! कोई सहेज ले

    इसकी डायरी के ये पन्ने

    इसके अरमान, इसके सपने

    कि यह मलाला भी पढ़ सके

    यूएनओ में अपनी बात कह सके

    इसकी भी बोली से गूंज उठे

    देश और दुनिया

    क्या फ़र्क़ पड़ता है इसका नाम

    मलाला है कि मुनिया!

    स्रोत :
    • रचनाकार : अलका सिन्हा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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