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जवाबी कार्रवाई

javabi karrvai

अनुवाद : सुरेश सलिल

महमूद दरवेश

अन्य

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महमूद दरवेश

जवाबी कार्रवाई

महमूद दरवेश

और अधिकमहमूद दरवेश

    प्यारे स्वदेश,

    मेरी ज़ंजीरें मेरे ही भीतर जनती हैं

    गरुड़ की कठोरता और एक आशावादी की कोमलता।

    मुझे नहीं पता था कि चमड़ी के पीछे

    मेरी अपनी चमड़ी के पीछे

    तूफ़ान इत्ती जगह घेर लेंगे

    और नन्हीं-नन्हीं नदियाँ शादी का जोड़ा पहने नज़र आएँगी।

    उन्होंने मुझे एक अंधी कोठरी में धाँध दिया

    और मेरा दिल जलती मशालों से रोशन हो उठा।

    उन्होंने दीवार पर मेरा क़ैदी नंबर लिखा

    और दीवारें हरे-भरे चरागाहों में तब्दील हो गईं।

    उन्होंने मेरे हत्यारे का चेहरा उँकेरा,

    लेकिन पलक झपकते ही वह चेहरा गुम हो गया।

    मैंने दीवार पर दाँतों से

    प्रभायुक्त पट्टियों से युक्त, तुम्हारा नक़्शा उँकेरा

    और अनित्य रात्रि का गीत लिखा।

    मैंने गुमनामी के बजाय पराजय का वरण किया

    और अपने हाथ

    रोशनी की किरनों में धँसाए।

    उन्होंने कोई फ़तह नहीं हासिल की

    कोई भी नहीं, फ़क़त भूचालों को उकसाने के,

    उन्हें दिखाई देते हैं सिर्फ़ चमकते हुए माथे

    सुनाई देती है सिर्फ़ ज़ंजीरों की झंकार।

    और अगर

    अपने मक़सद के सलीब पर

    मैं शहीद होता हूँ

    तो तय बात है कि मैं एक औलिया हूँ

    एक संघर्षरत योद्धा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : रोशनी की खिड़कियाँ (पृष्ठ 459)
    • रचनाकार : महमूद दरवेश
    • प्रकाशन : मेधा बुक्स
    • संस्करण : 2003

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