तुम्हारे लिए एक बोसा और... और मुबारकबाद
इसके अलावा भला मैं क्या कह सकता हूँ!
कहाँ से शुरू करूँ और कहाँ ख़त्म
वक़्त हदें तोड़कर सरपट भागा जा रहा है
और इस जलावतनी में, बतौर रसद, जो कुछ मेरे पास है
उसमें एक सूखी रोटी है, लालसा है, और
मेरी हताशाओं से लबरेज एक नोटबुक है।
जहाँ से मैं शुरू करूँगा
हरेक चीज़ जो कही जा चुकी है
या कही जाएगी
मुझे मेरे घर नहीं ले जाएगी
न बारिश लाएगी
न ही किसी भूले-भटके थके-माँदे परिंदे के जिस्म पर पंख उगाएगी।
रेडियो पर एक संदेश :
उससे कहो कि मैं ठीक हूँ
मैं चिड़े से कहता हूँ :
'अगर कभी तुम उसके क़रीबतर पहुँच पाना
तो मिहरबानी करके मुझे न भूल जाना
उससे कहना कि मैं ठीक हूँ।'
ठीक, हाँ, बिल्कुल ठीक
अभी भी मुझमें देख सकने की सामर्थ्य है
आसमान में चाँद अभी भी है
मेरी पुरानी पोशाक अभी भी बेकार नहीं हुई
यहाँ-वहाँ से मसक बेशक गई है
लेकिन मैंने उसे रफ़ू कर लिया है
और अब वह बिल्कुल ठीक-ठाक है।
इस वक़्त में बीस से ऊपर का हूँ
प्यारी माँ, तुम यह देखकर आश्वस्त हो सकती हो
कि मैं मर्दों की तरह ज़िम्मेदारियाँ निभा रहा हूँ
एक रेस्तराँ में काम करता हूँ, रक़ाबियाँ धोता हुआ
ग्राहकों के लिए कॉफ़ी बनाता हुआ—
अपने उदास चेहरे पर, उनके लिए बनावटी मुस्कान चिपकाए हुए,
ताकि उन्हें घर-जैसे अहसास से भर सकूँ।
अब मैं सिगरेट पीने लगा हूँ
एक दीवार पर झुककर, एक युवा लड़की को हैलो कहने के लिए
जैसे कि और युवक कहते हैं—
लड़कियों के बिना तो ज़िंदगी बदर्दाश्त से बाहर हो जाए!
मेरे दोस्त ने मुझसे एक रोटी की फ़रमाइश की
किसी आदमी को अगर हर रात
भूखे पेट सोना पड़े, तो उसके लिए जिंदगी के क्या मानी हो सकते हैं!
मैं ठीक हूँ
मेरे पास अपनी रोटी है
और कुछ सब्ज़ियाँ भी,
रेडियो पर मैंने जलावतनों के संदेश सुने—
सभी एक ही जुमला दुहराते हुए हम ठीक हैं,
किसी ने नहीं कहा मैं ठीक नहीं हूँ।
मेहरबानी करके अब्बा के बारे में कुछ बताइए!
अभी भी वे वक़्त से नमाज़ अदा करते हैं?
बच्चों से, धरती से और जैतून के दरख़्तों से
अभी भी उन्हें इश्क़ है?...
और मेरे भाई कैसे हैं?
क्या अब्बा के कहे मुताबिक़
वे मुदर्रिस बन गए?
जानती हो, मेरी आँखें किस बात से अश्कबार हो उठती हैं!
मान लो, किसी शाम मैं बीमार पड़ जाऊँ
तो क्या रात, मेरे लिए, उस मुजाहिद के लिए
जो यहाँ आने के बाद कभी अपने घर वापस नहीं लौट पाया,
अफ़सोस करेगी?
क्या, जिस दरख़्त के नीचे मैं गिरा
वह यह याद रखेगा कि यह बेजान चीज़ एक इंसान है?
क्या वह मेरी लाश की गिद्धों से हिफ़ाज़त करेगा?
प्यारी माँ,
मैं नहीं जानता कि ये काग़ज़ मैंने क्यों काले किए हैं
कौन-सी डाक उन्हें तुम्हारे पास तक पहुँचाएगी—
सड़क, समुद्री और हवाई, सारे रास्ते रुँधे हुए हैं
और तुम सब भी, जीवित या मृत, मेरी ही तरह बे-ठिकाना हो
बे-वत...न बे-घर...बे-ठिकाना और बिना अपने झंडे वाले
किसी आदमी के पास कोई ख़त भेजे जाने का क्या कोई मतलब है?...
- पुस्तक : रोशनी की खिड़कियाँ (पृष्ठ 460)
- रचनाकार : महमूद दरवेश
- प्रकाशन : मेधा बुक्स
- संस्करण : 2003
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