स्त्री मेरे भीतर : तीन इमेज

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गौतम राजऋषि

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स्त्री मेरे भीतर : तीन इमेज

गौतम राजऋषि

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    (शीर्षक पवन करण के चर्चित कविता-संग्रह “स्त्री मेरे भीतर” से साभार)

    एक

    रिवेंज

    मानते तो हो

    हो लेकिन मानूँ कैसे

    कि चाय में थोड़ी-सी कम रह गई चीनी पर

    उबाल लेता तुम्हारा ख़ून

    कुछ और मुनादी करता है अक्सर

    ऑफ़िस में बॉस की तानाशाही वाले

    तुम्हारे ऐलान के तले

    सुबह मेड के आने की मेरी शिकायत

    कहाँ अपनी उपस्थिति भी दर्ज़ करा पाती है

    कि कम रह गई चीनी की सफ़ाई में कुछ भी कहना

    महँगे कप के टूट जाने की वजह ना बने

    मानती हूँ मैं भी तो बहुत तुम्हें

    तो क्या हुआ कि चाव से बनाई हुई टिप्सी पुडिंग

    रात में नहीं परोसुँगी तुम्हें

    और खाऊँगी अकेले कल

    तुम्हारे ऑफ़िस चले जाने के बाद

    दो

    फैंटेसी

    अच्छे लगते हो

    सच कहती हूँ बहुत अच्छे लगते हो

    तर्ज़नी और मध्यमा के बीच

    सुलगते हुए गोल्ड फ़्लैक के साथ

    और वो सिर ऊपर उठाकर

    बंद आँखों में जाने क्या फ़ैंटेसाइज करते हुए

    धुएँ से कोई शक्ल-सी बनाते हो जब

    बहुत प्यार उमड़ता है तुम पर

    दूर किचेन से तुम्हें रह-रह देखती

    सुलगते स्टोव की तपिश में

    जलती मैं भी हूँ

    तवे पर पलटती रोटी के साथ

    साथ तुम्हारी सिगरेट के

    और साथ ही उठता है

    सुलगता-सा ख़्याल एक

    इक रोज़...किसी रोज़

    जो ऐसा हो जाए

    तुम जलो किचेन में स्टोव के संग

    और मैं धुएँ से शक्लें बनाऊँ

    ड्राइंग रूम के सोफ़े पर

    अच्छी लगूँगी मैं भी क्या तुम्हें

    क्या उमड़ेगा मुझ पर भी

    प्यार तुम्हारा मुझ जैसा...?

    तीन

    सटायर

    उठी हुई भृकुटियाँ तुम्हारी

    कम नमक वाली दाल का स्वाद

    ठीक करने से तो रही प्रिय

    वैसे भी डिनर के बाद

    कौन-सा वाक पर ले जाने वाले हो तुम

    बैठ जाना है उसी मुए टी.वी. के सामने

    और देखना है तुम्हें फुटबॉल ही

    नहीं पड़ता फ़र्क़ अब कि

    दिन हवा हुए वो सारे

    जब अधपकी रह गई रोटियों पर भी

    प्यार उमड़ता था तुम्हारा

    और दूर उस आइसक्रीम-पार्लर तक ले जाना

    वजह हुआ करती थी

    दिन भर की सारी थकान भगाने की

    मुगालते में हो तो बता दूँ प्रिय

    तुम्हारे ऑफ़िस के चेंबर में लगा एसी

    नहीं देती शीतल बयार किचेन में मेरे

    और ना ही बढ़ी हुई तुम्हारी सैलेरी

    सुधार सकती है मेरी रेसिपी यक-ब-यक

    ख़ुरदुरे हो आए मेरे हाथ तो नहीं

    हाँ, रोनाल्डो का किया हुआ गोल भुला दे

    कम पड़ गए नमक का स्वाद

    और प्यार करो शायद मुझे

    तुम आज की रात

    स्रोत :
    • रचनाकार : गौतम राजऋषि
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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