इन्द्रधनुष
indradhnush
जहिया सँ देखि रहल छी
एकटा विचित्र उदासी घेरने छै
एहि पुनर्वास केम्पक बच्चा केँ
ओकरा मोन मे बैसल छै
ओहन दुःख/जे ओकरा हँसय नहि दैत छै
ओकरा जीबय नहि दैत छै
भोर सँ साँझ धरि
आस लगौने-लगौने
जखन थाकि जाइत छै
ओकर मोन
तखन जा कऽ भेटैत छै
गोटेक आधेक आलूक फुट संग
पीयर-पीयर खिच्चड़ि
एक डब्बुक, दू डब्बुक
नापेक मुताबिक
पेट आ भूख
कोनो अर्थ नै रखैत छै
ओतय, जतय ओ जीवन केँ ठाढ़ कएने अछि
राहत केम्पक लाइन मे
बड़का-बड़का नेता अबैत छै
ओकर माथ हँसोथि कऽ चलि जाइत छै
पीठ परहक थपथपाहट केँ
एखनो महसूस करैत अछि ओ
एकटा नेता/एकटा विश्वासक संग
सबबेर सप्पत खाइत छै
ओकरा लेल/किछु जरूरे करतै ओ
आ पाछू महक कुर्त्ताक क्रीच
सरियबैत चलि जाइत छै
ओकर कर्त्तव्यक इतिश्री
बस भऽ जाइत छै ओतहि
गंगा मे नहेलाक बाद
जेना होइत छै लोक केँ
पाप सँ मुक्ति भेटि गेल
ओएह परम्परा मात्र रहि गेलै ओतय
ओ मीठ-मीठ भाषणक अर्थ
बुझय लागल
बुझय लागल अपना जीवनक सत्य केँ
ओ ककरा लग लाड़-दुलार करत
के छै ओतय ओकर अपन
माइ-बापक पता नहि
भाइ-बहिनक आस नहि
ने अपन घर, ने अपन आसमान
पेटक आगि मिझबै जोग
अपन चूल्हाक आगियो नहि
घुमि-घुमि नोर
बेर-बेर अबैत छै/ओकरा आँखि मे
आ ढप्प सँ खसि पड़ैत छै
गालक टघारदने पैर लग
जकर जमीनो अपन नै छै
ओ अप्रत्याशित आँखिये ताकि रहल अछि
आकाश दिस/की कोनो जादू तऽ नहि होइत छै ओतय
नहि तऽ असमानी रंग में
लाल-पीयर, हरियर रंगक
इन्द्रधनुष कोना बनि जाइत छै
जखन कि कोनो पेन्टर
नहि देखा पड़ैत छै ओतय
- पुस्तक : समयसँ संवाद करैत (पृष्ठ 46)
- रचनाकार : कामिनी
- प्रकाशन : स्मृति प्रिंटर्स एण्ड पब्लिशर्स
- संस्करण : 2008
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