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इच्छा का पेड़

ichchha ka peD

प्रतीक ओझा

प्रतीक ओझा

इच्छा का पेड़

प्रतीक ओझा

और अधिकप्रतीक ओझा

    इच्छा का कोई पेड़ हो तो उसकी डाल की टहनियाँ होंगे हम। एक-दूसरे से बतियाते, गले मिलते, रोते, प्रेम करते और बिछड़ते हुए हमारे ही किनारे-किनारे कलपेंगी नई हरी-हरी पत्तियाँ।

    मन इस डर में रहेगा कि उन्हें तोड़ ले जाए कोई, समय से पूर्व।

    समय से पूर्व वे पीली पड़ जाएँ कहीं, झर जाएँ किसी आँधी की प्रथम झोंक में, कोई चबा ले उन्हें, गिरा दे आग में, डूबो दे पानी के प्रवाह में।

    हम इसी तरह दिन रात ख़ुद से ज़्यादा बचाएँगे नव-पल्लवित पत्तियाँ, अपनी चिंता छोड़, उनके जीवन के प्रति रहेंगे चिंतित।

    किसी दिन जब उग जाएँगी वे, तब कहाँ जान पाएँगी हमारा त्याग, उनके लिए जिया यह सुखविहीन जीवन कौन दिखाएगा उन्हें, कौन बताएगा कि आँधी आने पर पूरी ताक़त से हमने उन्हें पकड़ा बिना यह जाने कि डाल ने हमें पकड़ा है भी या नहीं।

    कौन बताएगा कि जानवरों के झुंड आने पर उनकी पहुँच से दूर, उन्हें ही सबसे ऊपर किया हमने और स्वयं को झुकाते मिले जानवरों के मुँह की ओर।

    अपना सूर्य दिया उन्हें, बचाया आग और पानी से, यह हमारे ही परिश्रम का फल था कि उनका पल्लवन सफल हुआ।

    कौन ही बताएगा!

    कोई नहीं बताएगा, कुछ भी नहीं बता सकेगा, हमारे विलगाव तक भी नहीं ख़बर होने पाएगी उन्हें कि कैसे सँभाला गया सब...

    और जब हम विलग होंगे या हम दोनों में से किसी एक का आएगा अंतिम क्षण, तब साँस–साँस भर के लिए लड़ेंगे ख़ुद से, पत्ती–पत्ती के लिए भीतर भर आएगा मोह, ख़ूब करेंगे प्रयास सूखने का, ख़ूब कोशिश करेंगे कि सब हरा रहे पर हम सूख ही जाएँगे, नहीं बचा पाएँगे स्व को सूखने और पत्तियों के पीले होने से।

    बग़ल के पेड़ से एक पत्ती टूटेगी, एकदम हरी, हवा में कई ढिंचकीयाँ खाते कुछ आहिस्ते से गिरेगी ज़मीन पर उस कुछ नम कुछ सूखे ज़मीन पर उभरेगा, उसके गिर जाने के बाद का निशान...

    और हमारा मन वहीं अटका रहेगा, उसी निशान पर, कोई शोक-गीत नहीं होगा हमारे पास, अपने पीले होने के लिए।

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रतीक ओझा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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