उनके चिताओं के राख़ से फ़ैक्ट्रीयों की नींव रखी गई हैं
उनकी हड्डियाँ दीवारों में दफ़न है
उनके निचोड़े ख़ून से लिपाई की गई है
हम उनके दाँतो की ताबीज़ बनाए
गले में लटका कर भटक रहे हैं
उनकी लाश के ऊपर चूल्हा जलाकर
उनके चमड़ी की रोटी खा रहे हैं
हम आदमखोर हैं
हम उनकी भूख भी छीन लेना चाहते हैं
और रोटी भी
हम उनकी अंतड़ियों से सजावट करेंगे
और जो बच जाएँगे उन्हें बताएँगे कि वे असभ्य हैं
उन्हें सिखाएँगे कपड़े पहनने के सलीका
उनकी ज़मीने खोदकर लोहा निकालेंगे
वो शहर आएँगे
हमारी नालियाँ साफ़ करेंगे
उनके बच्चे कचरों के ढेर में पैदा होंगे
ऐसे हमारा देश स्वच्छ, सभ्य और समृद्ध बना रहेगा।
- रचनाकार : पूर्णिमा साहू
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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