हम किसान हन क्याला के
बिरवा जइसी तकदीर
सारी दुनिया
पूजै हमका
सत्यनरायन स्वामी के
हमहे मंडप हन।
बेफै-बेफै लोग हियाँ
आरती उतारैं
पढ़ि पोथी सरधा ते
फिरि हमका अक्त्यावैं।
लोटियन भरि भरि
नीरु चढ़ावैं
भजन सुनावैं
आँखी मूँदि पंडितउनू
तब संखु बजावैं।
पोथिन मा अपनी इज्जति पर
झूमि-झूमि हरसाई1
दिन दूने औ रात चौगुने
फूलि-फूलि हरियाई।
फूल, बढ़ा तौ बतिया आयीं
तनुकु पोढ़ायीं, अब तौ फल पर
ललुआ-बुधुआ सबहे की
नजरैं ललचायीं
पहिले गहरि काटि लइगे
फिरि जड़ ते काटिन
हिलि-मिलि कै पूजा का फल
अपनेन मा बाँटिन।
की ते रोई
कउनु सुनी
हमरी यह बिथा किहानी
लूटि चुके हैं
गाँवै वाले हमरी फसलैं
काटि रहे हैं जड़
अबहीं है हरी जवानी।
- पुस्तक : कस परजवटि बिसारी (पृष्ठ 77)
- रचनाकार : भारतेन्दु मिश्र
- प्रकाशन : पांडुलिपि प्रकाशन, दिल्ली
- संस्करण : 2000
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