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गुणानंद पथिक

gunanand pathik

मंगलेश डबराल

अन्य

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मंगलेश डबराल

गुणानंद पथिक

मंगलेश डबराल

और अधिकमंगलेश डबराल

    एक झलक में ही दिख जाता था गुणानंद पथिक का पूरा जीवन

    कितने ही लोगों ने देखा होगा उन्हें

    खंडहर हो रहे टिहरी क़स्बे की मुख्य सड़क पर

    बस अड्डे की भीड़ में स्वरों की एक लहर की तरह प्रवेश करते हुए

    गले से लटकता था पुराना हारमोनियम

    और कंधे पर झोले में स्वरचित गीतों की पुस्तिकाएँ

    पहले चार आने और फिर पचास पैसे में एक

    गुणानंद पथिक गाते थे पहाड़ को बदलने का गीत

    गाँव-गाँव की दीदियों-भुलियों से कहते जागो जल्दी जाओ

    तुमसे ही जाएँगे निठल्ले पहाड़

    यह बात लिख लो यह गीत सुन लो

    क्यों ग़रीब के घर कँटीली घास की भी किल्लत है

    कैसे अमीर के घर सजे हैं रात-दिन पकवान

    गुणानंद पथिक को सुनते लोग टॉफ़ी लेमन जूस भूलकर

    ख़रीद लेते गीतों की किताब

    उसे पढ़ते हुए जाते बस में बैठ घर की ओर

    स्त्रियाँ जो गाती हैं उन्हीं धुनों पर

    गुणानंद पथिक ने बनाए अपने नए गीत

    जैसे पुरानी चीज़ को नया बनाकर लौटाने में हो रचना का आनंद

    कइयों ने सीखा उनसे संगीत का पहला पाठ

    रामलीलाओं में अलग से सुनाई देती उनकी बहरे तवील

    लोग पहचान जाते बजा रहा है संगीत का वह कारीगर

    जो सिर्फ़ सुनाता नहीं बदल भी देता है राग को

    उनके गायन से ही शुरू होते थे कम्युनिस्ट पार्टी के जलसे तमाम

    देहरादून टिहरी उत्तरकाशी पौड़ी तक

    सफ़र में रहता था उनका छोटा-सा स्वप्न

    गुणानंद पथिक जान नहीं पाए उनके जीते जी बदल रहा था कुछ

    या बदलते-बदलते रह गया था कुछ

    कई तरह के नए बाजे बजे पहाड़ में

    पैसे की आवाज़ आने लगी जगह-जगह सुनाई दिया व्यवसाय का हॉर्न

    गीतों की किताब से ज़्यादा बड़े हो गए पचास पैसे

    कम्युनिस्ट पार्टी के पास भी आए इस बीच कई लाउडस्पीकर

    टिहरी में भागीरथी पर शुरू हुआ एक बड़ा बाँध

    गुणानंद गाते रहे वहा पुराना गीत

    यही थी उनके जीवन की आख़िरी झलक

    फिर बैठने लगी उनकी आवाज़

    मंद हो चला सुरीला वाद्य

    भूलने लगे वे अपने रचे गीत

    बचे-खुचे कम्युनिस्ट सोचते ही रहे

    एक दिन हो पथिकजी का बड़ा-सा सार्वजनिक अभिनंदन

    तभी हारमोनियम छोड़कर गए गुणानंद पथिक अज्ञात के पथ पर

    पहाड़ का लोकगीत बनकर।

    स्रोत :
    • रचनाकार : मंगलेश डबराल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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