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एहि भ्रममे नहि रहऽ

ehi bhramme nahi rahऽ

अशोक

अन्य

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अशोक

एहि भ्रममे नहि रहऽ

अशोक

और अधिकअशोक

    अवसरक तराजू टपाकऽ

    खूब काज सुतारै छह, राजनीति मिसर!

    धर्म-कर्म

    इतिहास-भूगोल

    जाति-भाषाक

    बड़ कयलह बाँट-बखरा

    मकड़ा सन तोहर

    जबाब नहि छह

    वाह, खूब परतारै छह, राजनीति मिसर!

    लोक के बाँटि-कूटि

    अपने खयबाक लेल

    राजाघर जयबाक हिस्सक

    अदौसँ लगौने छह।

    अनकर विवशता नोंचि-नांचि

    अपन भूख मेटयबाक प्रवृत्ति

    खूब जगौने छह।

    सूताबह-सूताबह

    हफीम खुआ लोककेँ सुताबह

    ओंघाइत, सपनाइत लोककेँ

    वाह, खूब बहटारै छह, राजनीति मिसर!

    अकाल तख्त

    राम जन्मभूमि

    बाबरी मस्जिद

    सती चबूतराक

    चारूकात हाथमे

    खूजल तरुआरि दऽ कए

    बिना कोनो मेंहक

    दाउन करबैत छह।

    बिला गेल नाँगरिकेँ

    फेरसँ उगबैत छह।

    बान्हह, बान्हह

    आँखिपर पट्टी बान्हह

    लोकेक काटल औंठा देखा

    वाह, लोकेकेँ पुचकारै छह, राजनीति मिसर!

    हे आब एहि भ्रममे

    नहि रहऽ जे

    तोँ अंगुलीमाल बनल रहबह

    कपिलवस्तुक कोनो सिद्धार्थ

    बुद्ध बनि कऽ तोहर

    हृदय परिवर्तन करथुन।

    आब तँ प्रत्येक कटल औंठा

    अपन हिसाब अपने करत।

    तोहर चेहराक एक-एक खोल

    लोक आब उतारै छह, राजनीति मिसर!

    स्रोत :
    • पुस्तक : चक्रव्यूह पसरैत (पृष्ठ 70)
    • रचनाकार : अशोक
    • प्रकाशन : नवारम्भ
    • संस्करण : 2023

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