दोपहर, कबूतर के पंख और शहर

dopahar, kabutar ke pankh aur shahr

श्रीधर करुणानिधि

श्रीधर करुणानिधि

दोपहर, कबूतर के पंख और शहर

श्रीधर करुणानिधि

और अधिकश्रीधर करुणानिधि

    शहर का तापमान

    उतना ही होता है

    जितना उसकी ठंडी शामों को हम

    अपनी गर्मजोशी भेंट करते हैं

    बर्फ़ीली हवाओं को भी

    गझिन से शहर में प्यार करने का उतना ही हक़ है

    जितना प्यार के क़ातिलों को नफ़रत करने का

    शहर के पार्क कब तक लठैतों के आतंक से

    घबराकर फूलों की तरह खिलना छोड़ेंगे

    कब तक अपनी गर्म रजाई में घुसती जाएगी

    सर्दी की सुबह

    पीली मरियल-सी रोशनी में

    यह वाक्य कहते हुए

    उसकी साँसों की आवाज़ से

    सोए हुए पत्तों को हिलते हुए महसूस करना

    शहर को तरोताज़ा बनाने की कवायद का सबसे उत्तेजक बिंदु है

    ठीक ही है कि शहर की पुरानी दीवारें

    भरी दोपहरी में ही सो जाएँ

    किसी प्रेमी जोड़े को प्रेम करने की इजाज़त देकर

    और सोने से पहले लठैतों को हुमसकर धमका दे

    कि ख़बरदार अगर तुमने इन्हें हाथ लगाया तो!!....

    जाड़े की दोपहर

    कबूतर के पंखों की तरह गर्म होकर

    शहरों की दीवारों को सताती है

    और उकसाती है लठैतों की नींद को...

    जो सो रहे हैं प्यार होने से बेख़बर

    और शहर के पार्क प्यार में डूबे हुए हैं

    इस भरोसे में कि लठैतों को धमका दिया गया है...

    स्रोत :
    • रचनाकार : श्रीधर करुणानिधि
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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