सुंदर फूल और सफ़ेद जो बने उसका भाग्य
sundar phool aur safed jo bane uska bhagya
सी. पी. कवाफ़ी
C. P. Cavafy

सुंदर फूल और सफ़ेद जो बने उसका भाग्य
sundar phool aur safed jo bane uska bhagya
C. P. Cavafy
सी. पी. कवाफ़ी
और अधिकसी. पी. कवाफ़ी
वह फिरा कहवाघर में जहाँ था वे जाते थे रोज़ाना संग-संग।
जहाँ था उसके माशूक़ ने कहा उससे तीन महीने पहले,
हमारे पास एक दमड़ी तक नहीं। हम दो लौंडे हैं जो
सिरे से कंगाल हैं—सीमित सबसे सस्ती जगहों तक।
मुझे तुमसे कहना होगा यह साफ़-साफ़, मैं अब
डोलता नहीं रह सकता इधर-उधर तुम्हारे संग।
कोई दूसरा, मैं चाहता हूँ तुम जान लो, मेरे
पीछे है।
इस कोई दूसरा ने उससे वायदा किया था कपड़ों के दो सूट और कुछ
रेशम से बने रूमालों का।—अपने माशूक़ को जीतने के लिए वापिस
उसने धरती आसमान एक कर दिया, और बीस पाउंड पाए उसने;
उसका माशूक़ फिर फिरने लगा संग उसके
उन बीस पाउंड के चलते;
लेकिन बावजूद इस सबके, उनके पुराने जुनून वास्ते,
उनके पुराने प्यार वास्ते, उनके बहुत अथाह जज़्बे के वास्ते—
कोई दूसरा या एक ठग, एक असली ओबाश;
उसने केवल एक सूट मँगाया उस के लिए, और
वह तक छकाते हुए, हज़ार मिन्नतों बाद।
लेकिन अब वह कुछ नहीं चाहता न वे कपड़े न सूट,
न कुछ और न रेशम के रूमाल,
या बीस पाउंड, या बीस स्पेनी डॉलर।
इतवार को उन्होंने उसे दफ़ना दिया, सुबह दस बजे।
इतवार को उन्होंने उसे दफ़ना दिया, लगभग एक हफ़्ता पहले।
उसके बिल्कुल सस्ते कफ़न पे, उसने रखे फूल,
सुंदर और सफ़ेद जो बने उसका भाग्य,
जो बने उसका सौंदर्य और उसके बाईस साल।
शाम में जब वह गया— काम पर जो उसके हाथ लगा था,
अपनी रोज़ी कमाने की एक ज़रूरत— कहवाघर तक जहाँ वे
जाते थे संग-संग, उसके हृदय में एक चाकू,
था उजाड़ कहवाघर जहाँ वे जाते थे संग-संग।
- पुस्तक : प्यास से मरती एक नदी (पृष्ठ 98)
- संपादक : वंशी माहेश्वरी
- रचनाकार : सी. पी. कवाफ़ी
- प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
- संस्करण : 2020
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