अगले सबेरे

agle sabere

विष्णु खरे

विष्णु खरे

अगले सबेरे

विष्णु खरे

और अधिकविष्णु खरे

    यदि किसी दुःस्वप्न के कारण ही नहीं

    तो जब सुबह जागते हो तो इस तरह स्मृतिहीन

    जैसे उसी क्षण जनमे हो

    अतीत वर्तमान भविष्य के अहसास से अपरिचित

    कभी-कभी तुम्हें ख़ुद को और अपने आस-पास को

    पहचानने में देर लगती है

    लेकिन चंद लमहों बाद

    पिछली शाम तक का सब कुछ

    धीरे-धीरे लौटता है

    और विस्मृति आकार लेने लगती है

    जिस तरह दवा का असर रहने पर

    विज्ञान-कथा का नायक स्वयं अपने को

    आईने में देख नहीं पाता लेकिन जब

    विलीन होता है उसका प्रभाव तो धीरे-धीरे प्रकट होती हैं

    उसकी कोशिकाएँ धमनियाँ मांसपेशियाँ उनमें बहता रक्त

    उसका पूरा शरीर

    फिर जैसे उस पर एक नई त्वचा आती है

    सारे उसमे नुक़ूश बनते हैं

    इसी तरह रात को ऐयार क़ुमक़ुमा

    सूरज के तिलिस्मी लख़लख़े से उतरता है

    सब लौट आते हैं हहराते हुए

    सारे कृत्य हासिल और सिले

    सारे उपकार कृतघ्नताएँ क़र्ज़ और भुगतान

    सारी असफलताएँ सारे अपमान

    एक ज़िंदगी की तमाम कुरूपताएँ गोया तुम्हारी समूची जीवनी

    और तुम पूरे लौट आते हो

    और बचाव का कोई रास्ता नहीं सूझता

    किसी घिरे हुए जानवर की तरह

    मुकम्मिल बन जाने के बाद

    अपनी इस संपूर्णता से चमड़ी बचाने के लिए

    तुम क्या कुछ नहीं करते

    रोज़-रोज़ के वही असंभव इरादे मंसूबे

    आत्मवंचना की वही सारी चेष्टाएँ भंगिमाएँ

    वही हास्यास्पद शौर्य

    वही एक झूठी फ़ौरी कृतार्थता पा लने की राहत

    आज का तुम्हारा मानव-जीवन अकारथ जाए

    इसका कोई काग़ज़ी या ज़ुबानी जमा-ख़र्च

    लेकिन इस सबसे अब तक क्या हुआ है जो आगे हो जाएगा?

    अँधेरा होते-होते कल तक का जो सब कुछ था

    उसमें आज का काफ़ी कुछ और जुड़ जाता है

    किसी आसेब का साया और हावी हो जाता है

    तुम लड़ते हो कि आए आए नींद ताकि उठना पड़े

    लेकिन यही सब कुछ तुम्हें जबरन सुलाता है अशरीर संज्ञाहीन

    अगले सबेरे के त्रासद दर्पण में

    लौटता तुम्हें लौटाता हुआ

    स्रोत :
    • पुस्तक : सेतु समग्र : कविता (पृष्ठ 32)
    • रचनाकार : विष्णु खरे
    • प्रकाशन : सेतु प्रकाशन
    • संस्करण : 2019

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

    पास यहाँ से प्राप्त कीजिए