दक्षिण में प्रकृति की गोद में
dakshin mein prkriti ki god mein
छुटपन में नहीं लिया मज़ा मंडली का
कामना रही बस शिखरों की
ग़लती से फँस गया दुनियादारी के जंजाल में
यों ही उलझा रहा तीस सालों तक
कै़द पक्षी लौटने को बेताब अपने पुराने जंगल में
पोखर की मछली जाना चाहती है फिर से अपने तालाब में
मैं जाना चाहता हूँ अपने दक्षिण की ओर
खेतों और बाग़ों में
बस दस एकड़ ज़मीन मेरी अपनी
घास-फूस से ढँके घर में आठ-नौ कमरे
मज़बूत क़द-काठी वाले छायादार पेड़,
ओरियों के पार सरपत वृक्ष
बड़े कक्ष के दरवाज़े के सामने आडू और आलूचे के पेड़
धुँधली दूरी पर एक गाँव
हमेशा धुएँ के दामन में
गली में कहीं भौंकता कुत्ता
कुकुटाता है शहतूत पर बैठा चूज़ा
दुनियादारी से मुक्त मेरा घर
इतने कमरे अक्सर ख़ाली
आख़िर कै़द से आज़ाद हुआ मैं
फिर से अपनी प्रकृति में।
- पुस्तक : सूखी नदी पर ख़ाली नाव (पृष्ठ 152)
- संपादक : वंशी माहेश्वरी
- रचनाकार : थाओ छ्येन
- प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
- संस्करण : 2020
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