अबैए, अबैए, धरती तल पर पसरऽ अबैए सिनुरिया प्रात
लगैए क्षणहिमे सिनुरकक अर्ध-ठोप
भऽ जायत चकमक स्फटिक गोला
आ, हँसत धरती 'वैनीआहपिनाला' सँ।
मुदा, हमरा लगैए,
लगैए हमरा इन्द्रधनुषी प्रात
भs जायत सत्यक नग्न मूर्ति।
आ, तखन तँ शंकाक मेघ पड़ा जायत
तर्कक आघात सहि
पति होयत असंख्य आन्हर
अवरुद्ध देखि जटिल मार्ग
ओझरायल बाट परक
गरिआओत भोतिआयल पथिक
चौबट्टी परक मूर्खता
अनन्तमे बौआ जायत।
जेना बौआयल छी हमहूँ
भरि-भरि राति श्मशानमे
मृत्युक हाड़क बोझ माथपर उठौने
बिसरल-बिसरल बात कतेक
सोचि-सोचि बौआयल छी।
बुझि-बुझि कऽ बात कतेक
तैयो सचेत रहि
कामना हम कयने छी संसार-पथक एहने
(जे)
हमरे जकाँ सभकेँ बौअयबाक थिक।
आ, कपैए, तेँ कपैए हृदय हमर (जे)
अबैए अबैए धरती तलपर अबैए सिनुरिया प्रात
(जे) क्षणहिमे भऽ जायत सत्यक नग्न-मूर्त्ति।
- पुस्तक : मैथिलीक नव कविता (पृष्ठ 70)
- संपादक : रामकृष्ण झा ‘किसुन’
- रचनाकार : हंसराज
- प्रकाशन : सांस्कृतिक विभाग, सुपौल, बिहार
- संस्करण : 1971
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