भले ही यह न जानूँ मैं कि इस सरज़मीं का
कोई मोल है या नहीं किसी और की नज़र में,
लेकिन मेरे तईं, यह मेरा वतन है,
आग की बाँहों में नन्हा-सा मुल्क,
मेरे बचपन की दुनिया डोलती हुई दूर,
इसी पर उगा हूँ—जैसे एक टहनी, तने पर;
और इसी ज़मीन में धँसेगी मेरी देह—
मैं हूँगा अपने ही घर में।
जब कभी कोई नन्ही-सी पौध
झुक आती है क़दमों में, लोट-पोट,
मैं बता सकता हूँ उसका नाम, उसके फूल का भी नाम।
मुझे पता है कि कौन किस रास्ते से जाता है
मुझे पता है कि गर्मियों की शाम
घर की दीवारों पर बहते बैंजनी दर्द के मानी क्या हैं।
उसे, जो जहाज़ में ऊपर उड़ जाता है,
उसे यह धरती नक़्शा-भर लगती है,
उसे क्या पत्ता कि मिहाइ वोरोश्मार्ती का घर कहाँ है!
उसे क्या पता इस नक़्शे में क्या-क्या छिपा है?
उसके तईं महज़ कल-कारख़ाने हैं, फ़ौज की बैरक है,
मेरे लिए लेकिन घसियारे भी, बैल और बुर्ज भी,
खेत-खलिहान भी!
उसकी दूरबीन में चिमनियाँ और खेत, बस!
मैं देख सकता हूँ कमकर, क़िस्मत बनाता हुआ।
मुझे दीख पड़ते हैं जंगल, बाग़ान
सीटियाँ बजाती अँगूरी बेलें, मक़बरे
क़ब्रों में दफ़्न दादी और नानी, रोतीं चुपचाप!
और ऊपर से जो महज़ रेल या बस्ती है
बम का निशाना भर, दरअसल वह भी सिपाही की कुटिया है
लाल झंडी से संदेशा भेजते सिपाही की कुटिया।
देखो, वहीं बच्चे हैं उसके चौगिर्द,
और फुदकते पिल्ले मिलों के अहातों में,
और वहीं सूअर, वहीं बीते हुए प्यार के
क़दमों की छापें, जीभ पर मीठी फिर कसैली यादें
बीत चुके चुंबन की।
और वह रहा पत्थर उस दूब पर
ऊपर से लेकिन वह नज़र नहीं आएगा
कोई उपाय नहीं जिससे वह दिख जाए—
उसी ने छिपाया था मुझे उस रोज़
जब मैं उस प्यार से नज़रें चुराता था।
दूसरे मुल्कों की तरह हम भी गुनहगार हैं
हमें भी पता है कि किसके ख़िलाफ़,
कब और कहाँ हमने किए हैं गुनाह,
लेकिन यहाँ भी तो
रहते हैं बेगुनाह, मेहनतकश, कवि भी,
दुधमुँहे बच्चे भी, जिनका विवेक
जागेगा एक दिन।
दुबके हुए हैं वे अँधेरी गुफ़ाओं में
बमों से बचते, इंतज़ार में अमन के।
एक दिन, किसी दिन ये गुमसुम हलक़ भी
पाएँगे अपना जवाब
तरो-ताज़ा उनके अल्फाज़ में।
तब तक, ओ तब तक हमें दे दो पनाह
अपने इन काले डैनों की छाँह में
रात के पहरुए, बादलो!
- पुस्तक : दस आधुनिक हंगारी कवि (पृष्ठ 26)
- रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक गिरधर राठी, मारगित कोवैश
- प्रकाशन : वाग्देवी प्रकाशन
- संस्करण : 2008
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.