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बारजे

barje

अनुवाद : सुरेश सलिल

रफ़ाइल अलबर्ती

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और अधिकरफ़ाइल अलबर्ती

    (1)

    देवदूत तुम्हारी वंदना करते हैं, सोफ़िया,

    घाटी की जुगनू,

    प्रभु-तारक अपने निकुंज से

    उड़ता है तुम्हारे अनगढ़ आवास के लिए।

    मैदान की लालटेन,

    प्रार्थना करो लुप्त तारक के लिए

    ताकि सूर्य के हाथों वह मुक्ति पा सके

    अधखाए सेब से,

    पाँगुर वृक्ष की कँटीली गुठली से।

    सुरंग में फुदकने वाली तितली,

    सोफ़िया, सागर की नन्हीं जलपरी :

    छिलके के खोल वाली नन्हीं संदूकची

    हमारा जलपोत बने सपनों में हरदम।

    (2)

    धरती नाचती हुई फ़िसल रही है

    और बर्फ़ गुनगुना रही है कोई धुन तुम्हारे लिए :

    एक देवदूत तुम्हारी बर्फ़गाड़ी खींच रहा है

    और सूर्य ग्रीष्मावकाश पर चला गया है।

    मैं अपने काग़ज़ी स्कंधों पर ढोकर

    बड़े दिन की सौगात लाया हूँ तुम्हारे लिए :

    एक पेड़।

    देखो, देखो सोफ़िया, आकाशवाणी हो रही है :

    यह शहर तुम्हारे लिए

    मिसरी का

    लुकाट का

    रसभरी का

    या नींबू

    का बना हुआ।

    (3)

    तुम्हारी उँगली के छल्ले से मैंने इस प्रार्थना का पान किया,

    इस त्रिपंखी प्रार्थना का :

    रहने दो अपना क्रोशिया, सोफ़िया,

    सितारों के पट में,

    तुम कुमारी मरियम का अवतार हो

    और नन्हीं रेड राइडिंग हुड का,

    सारी दुनिया तुम्हारे नाम का गान करती है।

    तुम—

    वह रोशनी हो

    जो रोशनी से फूटती है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : रोशनी की खिड़कियाँ (पृष्ठ 196)
    • रचनाकार : रफ़ाइल अलबर्ती
    • प्रकाशन : मेधा बुक्स
    • संस्करण : 2003

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