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कुपंथी औलाद

kupanthi aulad

रफ़ीक़ शादानी

अन्य

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रफ़ीक़ शादानी

कुपंथी औलाद

रफ़ीक़ शादानी

और अधिकरफ़ीक़ शादानी

    औरन के कहे मा हम आयन

    काया का अपने तरसायन

    कालेज मा भेजिकै भरि पायन

    तू पढ़इ से अच्छा घरे रहव

    चाहे खटिया पर परे रहव!

    हम सोचा रहा लिखि पढ़ि जइहौ

    आकास पै यक दिन चढ़ि जइहौ

    पुरखन से आगे बढ़ि जइहौ

    अब घर कै खेती चरे रहव

    तू पढ़इ से अच्छा घरे रहव!

    जबसे तू स्कूल गयव

    तू फर्ज का अपने भूलि गयव

    तू क्वारै भइया झूलि गयव

    भट्ठी मा हबिस के बरे रहव

    तू पढ़इ से अच्छा घरे रहव!

    तुमसे अच्छा रघुआ हरिजन

    डिगरी पाइस आधा दर्जन

    अस्पताल मा होइगा सर्जन

    तू ऊँच हौ ओकरे तरे रहव

    तू पढ़इ से अच्छा घरे रहव!

    हम सोचा रहा अफसर बनिहव

    या देसभक्त लीडर बनिहव

    का पता रहा लोफर बनिहव

    अब जेब मा कट्टा धरे रहव

    तू पढ़इ से अच्छा घरे रहव!

    फैसन अस तुम पर छाइ गवा

    एक राही धोखा खाइ गवा

    हिजड़े का पसीना आइ गवा

    जीते जी भइया मरे रहव

    तू पढ़इ से अच्छा घरे रहव!

    हर बुरे काम पर अमल किह्यो

    कुछ पढ्यो खाली नकल किह्यो

    बरबाद भविस कै फसल किह्यो

    अब बाप कै सब सुख हरे रहव

    तू पढ़इ से अच्छा घरे रहव!

    हम पुन्नि किहा तू पाप किह्यो

    हम भजन तू फिल्मी जाप किह्यो

    गुंडई में कालिज टाप किह्यो

    जो मन मा आवै करे रहव

    तू पढ़इ से अच्छा घरे रहव!

    अइसेन जो बिगाड़े ढंग रहियो

    बेहूदन के जो संग रहियो

    जेस रफीक हैं वैसेन तंग रहियो

    पूलिस की नजर से टरे रहव

    तू पढ़इ से अच्छा घरे रहव!

    स्रोत :
    • पुस्तक : जियौ बहादुर खद्दरधारी (पृष्ठ 72)
    • संपादक : अटल तिवारी, अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी
    • रचनाकार : रफ़ीक़ शादानी
    • प्रकाशन : परिकल्पना, दिल्ली
    • संस्करण : 2025

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