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अइसइ दिन नाई रहिहैं

aisai din nai rahihain

जगजीवन मिश्र ‘जीवन’

जगजीवन मिश्र ‘जीवन’

अइसइ दिन नाई रहिहैं

जगजीवन मिश्र ‘जीवन’

और अधिकजगजीवन मिश्र ‘जीवन’

    कछु नाहीं बोलउ नहि सब का कहिहैं

    अपनउ अइसइ दिन सब दिन नाई रहिहैं

    ठिठुरनि भरी चलइ पुरवइया झमझम बरसइ पानी

    लरिका आँचर माँ लुकुवावइ चुवै जो टूटी छानी

    यइ भीगी सब कथरी कमरी का हुइहैं

    कछु नाहीं बोलउ नहि सब का कहिहैं

    अपनउ अइसइ दिन सब दिन नाई रहिहैं

    दाना बचा अन्न का नाहीं का बनि हैं अब रोये

    तीन दिना ते सब जन भूखे भइयउ भूखे सोये

    जोर बोलउ नाहीं जगिहैं तौ फिरि रोइहैं

    कछु नाहीं बोलउ नहि सब का कहि हैं

    अपनउ अइसइ दिन सब दिन नाई रहिहैं

    अइसे महियाँ मरनुइ है जो आवइ पहुना पाई

    भइया द्वीज काल्हि है बोलउ का करिबो का नाई

    का बिछइबो का खवइबो जो तौ भैया अइहैं

    कछु नाहीं बोलउ नहि सब का कहिहैं

    अपनउ अइसइ दिन सब दिन नाई रहिहैं

    विधना अइसि गरीबी दीन्हेंउ तउ कुछु राह बताएउ

    जइसे-तइसे हम भरि डरिबै औरेक नाहि सताएउ

    नहि तौ कुछु बिन मौंतइ मरि जइहै

    कछु नाही बोलउ नहि सब का कहिहैं

    अपनउ अइसइ दिन सब दिन नाई रहि हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : सिरका (अवधी गीत संग्रह) (पृष्ठ 3)
    • रचनाकार : जगजीवन मिश्र ‘जीवन’
    • प्रकाशन : भगवत मेमोरियल इंटर कॉलेज समिति, मिश्रिख, सीतापुर
    • संस्करण : 2015

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