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अहर्निश प्रेम

aharnish prem

रोमिशा

अन्य

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रोमिशा

अहर्निश प्रेम

रोमिशा

और अधिकरोमिशा

    करबाक अछि अहाँसँ बहुत रास गप्प

    निरभ्र अकास तकैत तरेगनक मध्यसँ निकलैत

    उज्जर धपधप इजोरियाक प्रकाशमे

    अहाँक आँखि दिस निर्निमेष देखैत

    अहर्निश प्रेमक गप्प...

    मुदा कोना पाटब हम अपना दुनूक मध्य

    संवादहीनताक अथाह खधारि

    जकर सीमानपर ठाढ़ अछि अहाँक

    इच्छाक खूब झमटगर गाछ

    सिंचित होइत अछि जकर जड़ि

    हम्मर साँसक आरोह-अवरोहक मध्यसँ टघरैत

    एकाकीपनक नोरसँ...

    चलू एकबेर फेरसँ हमहीँ बुझि जाय छी

    अहाँक मौनक समर्थ भाषा

    जकर आखर-आखर आश्वस्त करैत अछि हमरा

    जे कहियो तँ जरूर घुरत

    आँखिक पल परसँ उचटल पहाड़ सन निन्न

    प्रेमक रहस्य खोलैत किछु स्वप्न लेने...

    ताहिकालमे जीवन कोनो मरीचिका नहि रहत

    ने कोनो जिम्मेदारीक मचानमे खुटेसल

    अपसियाँत भेल धीपल आक्रोशित

    हाड़-मासु सन हम अहाँ...

    तखन कोनो दर्शन संघर्ष या अन्तर्द्वन्द्व नहि रहत

    तखन हमरा अहाँक मध्य बहत मात्र

    प्रेमक अन्तश्चेतनाक ऊर्जा जे ढाहि देत

    छद्म देहक सब आकर्षण।

    स्रोत :
    • पुस्तक : फूजल आँखिक स्वप्न (पृष्ठ 42)
    • रचनाकार : रोमिशा
    • प्रकाशन : किसुन संकल्प लोक
    • संस्करण : 2019

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