Font by Mehr Nastaliq Web

किसनवा फूलइँ इठलाइ,

सिसिर गा बीति, चैतुगा आइ।

फरा अस बेझरा बेतु अघाइ

सुवौना बाली लै लै जाइ,

लदे अर्रही पर घौदा अइस,

होइ हाथी पर हौदा जइस,

चना मा बूटइ-बूट देखाइ,

सिसिर गा बीति चैतुगा आइ॥1॥

जँवन की बाली ओरवति जाइ,

भरा सरसौं माँ तेलुइ-तेलु,

चलइ कुछु अइस बसंती बायु,

भरइ कन-कन मा अतरु-फुलेलु,

खेतु गोहुँअन का कस लहराइ,

सिसिर गा बीति चैतुगा आइ॥2॥

नसा कुछु अइस कोइलिया किहे,

अकारन घूमि-घूमि कुकुवाइ,

भाँग असि पिहे पपिहरा फिरइ,

गये बगियन के दल बौराइ,

धरतिया चुनरी मा मुसुकाइ,

सिसिर गा बीति चैतुगा आइ॥3॥

भौंरऊ कमलन पर मँडरायँ,

चिरैया खेतन मा इतरायँ,

ताल पर चरि-चरि ताजी घास,

सँड़उनू डहकैं भन्नायँ,

खेत सब पकि-पकि गे पियराइ,

सिसिर गा बीति चैतुगा आइ॥4॥

स्रोत :
  • पुस्तक : घास के घरउँदे (पृष्ठ 26)
  • रचनाकार : श्यामसुंदर मिश्र ‘मधुप’
  • प्रकाशन : आत्माराम एण्ड संस, कश्मीरी गेट, दिल्ली
  • संस्करण : 1991

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY