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आधुनिक रोम

adhunik rom

संदीप तोमर

अन्य

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संदीप तोमर

आधुनिक रोम

संदीप तोमर

और अधिकसंदीप तोमर

    रोम

    तुम कल भी जले थे

    और तब नीरो ने 

    बजाई थी बांसुरी

    उसने दी थी दावत

    अपने मेहमानों को

    और तंदूर में डाले थे 

    ज़िंदा इंसान कोयले की जगह

    चखे गए थे 

    व्यंजन लज़ीज़

    रोम

    तुम आज भी जल रहे हो

    आज नीरो कभी ड्रम पीटता है

    इंसानों की पीठ पर

    कभी भरता है हुँकार

    उन्हें मज़हबी मज़ा चखाने की 

    नीरो ताड़ी नही पीता

    उसे चाहिए इंसानी लहू

    वह लहू चखता है हर रोज़ 

    ग़रीब मेमनों का 

    और परोसता है 

    उसका शरबत अपने दोस्तों को

    रोम 

    जलना तेरी तक़दीर में है

    तेरे लोग अब आस नहीं लगाते

    जीने की 

    वो इंतज़ार करते हैं

    तंदूर में गिरने के लिए 

    अपनी बारी आने का

    उन्हें पता है

    ड्रम की आवाज़ उनकी

    खाल से बनी पतली झिल्ली से ही आएगी

    इसीलिए मज़बूत कर रहे है वो अपनी चमडी

    रोम 

    जलना तुम्हारी नियति है

    रोम तुम जलते रहो

    जलना तुम्हारी नियति है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : संदीप तोमर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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