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आभास

abhas

अरे, अब्दों का इतिहास!

कह, तू किन शब्दों में देगा युग-युग का आभास?

देख इधर, वह विष ही पीते,

हमें यहाँ कितने दिन बीते,

फिर भी अमृतपत्र हम जीते

जिए आत्म-विश्वास।

अरे, अब्दों के इतिहास!

पुण्य-भूमि के इस अंचल में,

सिंधु और सरयु के जल में,

गंगा-यमुना के कल-कल में,

अगणित वीचि-विलास।

अरे, अब्दों के इतिहास!

मंत्रों का दर्शन, अवतारण,

और दर्शनों का ध्रुव-धारण,

वह उपनिषदों का उच्चारण,

योगों का अभ्यास।

अरे, अब्दों के इतिहास!

आत्म-रूप का वह उजियाला,

त्याग, याग, तप की वह ज्वाला,

पावन पवन तपोवन वाला,

वह विकाश, वह ह्रास।

अरे, अब्दों के इतिहास!

कब की थी वह संचित माया,

जो पसार कर अपनी काया,

पाकर राम-राज्य की छाया,

करती थी सुख-वास।

अरे, अब्दों के इतिहास!

बजी चैन की वंशी निर्भय,

आया कलि के आगे अविनय,

फिर भी धर्मराज का जय जय,

छाया वह उछ्वास!

अरे, अब्दों के इतिहास!

हम उजड़ों ने भी बढ़-बढ़ कर,

पार उतर ऊपर चढ़-चढ़ कर,

देश बसाए हैं गढ़-गढ़ कर,

तब भी बिना प्रयास।

अरे, अब्दों के इतिहास!

संघ-शरण लेकर सुखदाई,

फिर भी यहाँ शांति फिर आई,

गूँज गिरा गौतम की छाई,

फिर नव भव-विन्यास।

अरे, अब्दों के इतिहास!

उदासीनता की दोपहरी,

श्रांतिमयी निद्रा थी गहरी,

तब भी जाग रहे थे प्रहरी,

कर सका कुछ त्रास।

अरे, अब्दों के इतिहास!

सहसा एक स्वप्न-सा आया,

वह क्या-क्या उत्पात लाया,

जागे तो यह बंधन पाया,

हुआ हाय खग्रास।

अरे, अब्दों के इतिहास!

किंतु निराश होना भाई,

इसमें भी कुछ भरी भलाई,

तुमने मोहन की मति पाई,

उठने दो उल्लास।

अरे, अब्दों के इतिहास!

निज बंधन भी विफल जावे,

विश्व एक नूतन बल पावे,

बंधु-भाव में वैर बिलावे,

अनुपम ये दिन-मास।

अरे, अब्दों के इतिहास!

स्रोत :
  • पुस्तक : मंगल-घट (पृष्ठ 43)
  • संपादक : मैथिलीशरण गुप्त
  • रचनाकार : मैथिलीशरण गुप्त
  • प्रकाशन : साहित्य-सदन, चिरगाँव (झाँसी)
  • संस्करण : 1994

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