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पीर मन के सँवारत

peer man ke sanvarat

जगन्नाथ

जगन्नाथ

पीर मन के सँवारत

जगन्नाथ

और अधिकजगन्नाथ

    पीर मन के सँवारत उमर हो गइल

    अब सपना सँचे के हुनर हो गइल

    जे भइल, हमरा आँतर के भीतर भइल

    कइसे तोहरा, यारे, खबर हो गइल

    नेह के एगो झिंटिकी रहे बस गिरल

    मन के कुअँना में लहरेलहर हो गइल

    गाँव बा, एगो असरा रहल हऽ, मगर

    अब सुनलीं ह, ऊहो शहर हो गइल

    बात मन के खुलासा निकल ना सकल

    बा कहे में गजल कुछ कसर हो गइल

    स्रोत :
    • पुस्तक : खुद के तलाशत (पृष्ठ 22)
    • रचनाकार : जगन्नाथ
    • प्रकाशन : भोजपुरी साहित्य प्रतिष्ठान, पटना
    • संस्करण : 2015

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