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ऊ रोवावत रहल ना

uu rovavat rahal na

जगन्नाथ

जगन्नाथ

ऊ रोवावत रहल ना

जगन्नाथ

और अधिकजगन्नाथ

    रोवावत रहल ना हँसावत रहल

    रस्म जिअला के कइसे निभावत रहल

    रूप आँखिन में लागेला, लहरेला मन

    हम का जानी, उहे कुल्हि बतावत रहल

    जिन्दगी कइसे राउर बिगड़ल, कहीं

    आपन सँवारत-बनावत रहल

    खुद से मन में जे कहले रहीं रात भर

    घर के दीवार फजिरे सुनावत रहल

    हाथ पसरो कइसे, कतहुँओ, कहीं

    जिन्दगी भर जे खुलके लुटावत रहल

    हम गोदत रहीं मन के भीतर गजल

    साँस बाँचत रहल, गुनगुनावत रहल

    स्रोत :
    • पुस्तक : खुद के तलाशत (पृष्ठ 20)
    • रचनाकार : जगन्नाथ
    • प्रकाशन : भोजपुरी साहित्य प्रतिष्ठान, पटना
    • संस्करण : 2015

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