Font by Mehr Nastaliq Web

उपचार

upchaar

अन्य

अन्य

एक राजा अपनी नपुंसकता से बहुत दुखी था। उसे रात-दिन यह चिंता खाए जाती थी कि वह कभी पिता नहीं बन सकेगा और उसे बिना उत्तराधिकारी के ही मरना होगा। अपने अंतःपुर की सुंदर स्त्रियों को देखकर उसकी व्यथा और बढ़ती थी। कोई भी वैद्य, हकीम, झाड़ागर और तांत्रिक उसकी नपुंसकता का उपचार कर सका। बहुत उपाय किए, पर पौरुषत्व के आनंद से वह वंचित ही रहा, जो कि उसके राज्य के निर्धनतम व्यक्ति को भी प्राप्त था। राजा के दुख का पार था।

एक दिन उसने सुना कि उसके राज्य में कोई दरवेश आया है जो हर बीमारी का इलाज जानता है। उसके लिए कोई भी रोग असाध्य नहीं। युवा राजा को आशा की किरण नज़र आई। वह गुप्त रूप से दरवेश के पास गया। राजा की व्यथा सुनकर दरवेश ने एक छोटी शीशी निकाली। उसमें सुर्ख़ अकसीर भरी थी। उसमें से तीन-चौथाई अकसीर दरवेश ख़ुद पी गया और बची हुई राजा को देते हुए कहा कि सुबह एक बूँद दवा तीन दिन लें और इसका असर देखें। एक दिन में एक बूँद से ज़्यादा नहीं, इसमें भूल करें। राजा ने उसका बहुत आभार माना और अकसीर की शीशी लेकर राजमहल लौट गया। पहली ख़ुराक से ही उसे फ़र्क़ महसूस हुआ। दूसरी ख़ुराक से उसे सामान्य व्यक्ति जितना पौरुषत्व प्राप्त हो गया। तीसरी बूँद ने उस सुप्त वासना को पूर्णतया प्रज्वलित कर दिया और उसे शय्या में साक्षात व्याघ्र बना दिया।

राजा में आह्वाद का ओर-छोर रहा। कुछ दिनों में जब वह अपनी नई शक्तियों का अभ्यस्त हो गया तो उसे अपूर्व शांति का अनुभव हुआ और उसे दूसरी बातों और लोगों के बारे में भी सोचने का अवकाश मिला। दरवेश और उसकी अद्भुत शक्तियों के बारे में सोचकर वह दंग रह गया। कितनी आसानी से शीशी की तीन-चौथाई अकसीर वह एक ही घूँट में पी गया, जबकि उसकी तीन दिनों में तीन बूँदों ने ही राजा की वासना को इतना भड़का दिया! इसका रहस्य जानने की उत्कंठा से वह फिर दरवेश के पास गया। शिष्टाचार की दो-चार बातों के बाद उसने दरवेश से पूछा, “आपने मुझे पुरुष बनाया इसके लिए आपका आभार मैं किन शब्दों में व्यक्त करूँ! आपकी अकसीर ने तो कमाल कर दिया! पर मेरे मन में एक शंका है। मैं जानता हूँ कि अकसीर ने मुझ पर कैसा ज़बरदस्त असर किया! मुझे ताज्जुब है कि आप जैसा ब्रह्मचारी इतनी अकसीर पीकर भी कैसे शांत बना रहता है। इसका रहस्य क्या है?”

दरवेश थोड़ी देर ख़ामोश रहा। फिर संजीदगी से कहने लगा, “महाराज, आपकी शंका का मैं कल जवाब दूँगा, अगर तब तक आप ज़िंदा रहे। अभी तो मेरा फ़र्ज़ यह है कि मैं आपकी ज़िंदगी बचाने की कोशिश करूँ। आपकी ज़िंदगी का चिराग़ बुझने वाला है। मैं आदमी का चेहरा पढ़ लेता हूँ। मुझे मालूम है कि आप कौन हैं और आपकी ज़िंदगी कितनी है। कल सूरज निकलने से पहले ही आपका चिराग़ गुल हो जाएगा। आपकी क़िस्मत में यही बदा है। लेकिन मैं पूरी कोशिश करूँगा कि आपकी ज़िंदगी बच जाए। शायद मालिक मेरी सुन लें।” यह कहकर उसने अकसीर की दूसरी शीशी निकाली और राजा के मुँह में पूरी शीशी ख़ाली कर दी। राजा मंत्रबिद्ध की तरह उसे पी गया। दरवेश की भविष्यवाणी से वह भयाक्रांत हो गया। उसका समूचा अस्तित्व हिल गया। उसे साँस लेने में भी कठिनाई अनुभव हुई। उसने दरवेश से कुछ पूछना चाहा, पर पूछ सका। दरवेश ने राजा को घर जाने को कहा और झोंपड़ी में ओझल हो गया।

राजा के लिए पालकी तक जाना दूभर हो गया। उसे लगा जैसे उसके पावों से पहाड़ बँधे हों। उसने अंतःपुर में प्रवेश किया तो सुंदर स्त्रियाँ उसे देखकर मुस्कुराई और उससे लिपटने के लिए आगे बढ़ीं। पर राजा ने उन्हें परे धकेल दिया। उनके सौंदर्य से उसके हृदय में असहय टीस उठी। उसके मनोमस्तिष्क पर केवल आसन्न मृत्यु मँडरा रही थी। वह पाँव घसीटता हुआ शयनकक्ष तक पहुँचा। उसने आदेश दिया कि जब तक वह बुलाए कोई उसके पास आए और द्वार बंद करके सोने की चेष्टा करने लगा। पर वह रात भर करवटें बदलता रहा। रेशमी नरम शय्या उसके लिए काँटों की सेज हो गई। मृत्यु के भय से उसका रोम-रोम आविष्ट हो गया। महल की घड़ी आधे-आधे घंटे पर टन-टन करती तो उसे वह मृत्यु का घंटनाद लगता। सवेरा हुआ उस समय वह निर्जीव-सा पलंग पर पड़ा था। मानो उसका सारा ख़ून निचुड़ गया हो। बंद खिड़कियों की झिर्रियों से कमरे में आती सूरज की किरणों को देखकर वह उठा। सूरज को ऊपर उठते देखकर उसमें पुनः प्राणों का संचार हुआ। उसके अंतस् में उल्लास ठाठें मारने लगा। मानो उसका नया जन्म हुआ हो। वह तुरंत दरवेश के पास गया। अंततः उसने उसका जीवन बचा लिया था।

दरवेश झोंपड़ी के बाहर बैठा हुक्का गुड़गुड़ा रहा था। राजा को देखकर वह मुस्कुराया। पूछा, “कहिए राजन, रात कैसी कटी? रानियों के साथ ख़ूब सुख भोगा होगा?”

राजा को इस सवाल की उम्मीद नहीं थी। हैरानी से बोला, “रानियाँ? सुख? मेरे सर पर तो मौत मँडरा रही थी और आप सुख-भोग की बात कर रहे हैं?”

दरवेश ने हौले से कहा! “महाराज, मुझे पता था आपकी उम्र बहुत लंबी है। मैंने आपको सिर्फ़ इसलिए डराया, ताकि मेरे दिल की क़ैफ़ियत आप ख़ुद महसूस कर सकें। अब तो आप समझ गए होंगे कि इतना अकसीर पीकर भी मैं शांत कैसे बना रहता हूँ, जबकि उसकी चंद बूँदों ने आपको पागल कर दिया था। आप यह भी समझ गए होंगे कि जब मौत का भूत सर पर सवार हो तो दुनियावी हवस हवा हो जाती है। आपकी कामुकता को भड़काने के लिए मैंने आपको अकसीर की पूरी शीशी पिलाई, पर आप पर उसका कुछ भी असर नहीं हुआ, क्योंकि आपके दिलोदिमाग़ पर मौत की दहशत क़ाबिज़ थी। आपने तो मौत के बाघ को एक रात ही देखा, पर मेरी आँखों के आगे वह हर पल नाचता रहता है। तब मेरे जेहन में दूसरी बातें कैसे समा सकती हैं? मौत के लिए तैयारी करना ही मेरी ज़िंदगी का मक़सद है। इसलिए हर लम्हा वह मेरे ख़याल में रहती है और मैं उसके ख़ैरमक़दम के लिए तैयार रहता हूँ। अब आप घर जाइए! मालिक आपको लंबी उम्र दे! इस सबक को हमेशा याद रखना!” यह कहकर दरवेश झुका और ओझल हो गया।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत की लोक कथाएँ (पृष्ठ 208)
  • संपादक : ए. के. रामानुजन
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2001

संबंधित विषय

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY