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भूकंप

bhukamp

परमात्मा ने पहले आकाश बनाया। आकाश बहुत बड़ा था। इतना बड़ा कि उसे स्वयं अपने ओर-छोर का पता नहीं चलता था। इतने विस्तृत आकाश का कोई संगी साथी नहीं था जिससे वह अकेलेपन का शिकार था। वह अकेला बैठा-बैठा ऊबता रहता। उसने परमात्मा से प्रार्थना की कि उसे कोई साथी दे दीजिए जिससे उसका अकेलापन दूर हो जाए।

‘चिंता मत करो! शीघ्र ही तुम्हें एक साथी मिल जाएगा।' परमात्मा ने कहा।

उन दिनों परमात्मा खंजागपा पृथ्वी का सृजन कर रहे थे। कुछ दिन बाद पृथ्वी बनकर तैयार हो गई। आकाश ने जब पृथ्वी को देखा तो बस, देखता ही रह गया। विभिन्न रंगों से सजी हुई पृथ्वी नीले आकाश को बहुत भाई। इधर पृथ्वी ने भी आकाश को देखा तो नीलवर्ण आकाश उसे अच्छा लगा।

पृथ्वी और आकाश में मित्रता हो गई। दोनों घंटों बातें करते रहते। दोनों एक-दूसरे की ओर देखते, मुस्कुराते, लजाते और तरह-तरह के संकेत करते। धीरे-धीरे दोनों में परस्पर प्रेम हो गया। अब वे एक-दूसरे से मिलने को लालायित हो उठे।

एक दिन आकाश से रहा गया और वह पृथ्वी से मिलने चल पड़ा। इधर पृथ्वी भी व्याकुल हो उठी और आकाश से मिलने से मिलने चल पड़ी। जैसे ही दोनों आमने-सामने हुए वैसे ही दोनों ने एक-दूसरे को अपने आलिंगन में ले लिया। दोनों कामातुर हो उठे और कुछ ही देर में संभोगरत हो गए। बस, उसी पल संसार का पहला भूकंप आया।

इसीलिए लखेर जनजाति मानती है कि पृथ्वी और आकाश के संभोग करने से भूकंप आते हैं।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 320)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009

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