अवधी लोकगीत : चतइतइ कइ तिथि नउमी राम
awadhi lokgit ha chataitai kai tithi naumi ram
रोचक तथ्य
संदर्भ—राम द्वारा यज्ञ का आयोजन।
चतइतइ कइ तिथि नउमी राम जग्गि रोपा, राम जग्गि रोपा हो,
मोरे रामा, बिनु सीता जगि सूनि, सितइ लई आवउ हो।।1।।
अगवा के घोड़वा बसिष्ठ मुनि पछवा त लछिमन हो,
मोरे रामा, हेरइ लागे मुनि कड़ मड़इया जहाँ सीता तप करइँ हो।।2।।
नहाइ खोरि सीता ठाढ़ि भई, झरोखनि ठाढ़ी भई हो,
एइ हो, आवत हैं गुरु जी हमारि अउ लछिमन देवर हो।।3।।
चेरिया! लाउ न तू जुड़ पानी तउ गुरु के चरन धोई हो,
सीता गुरु जी के चरन पखारईं अउ मथवा चढ़ावईं हो।।4।।
मोरे रामा, अतरी अकिल सीता तोहरे तु बुधि कई आगरि हो,
सीता! के तोहरा हरा है गियान, रामहि बिसरायउ हो।।5।।
एइ हो, सब तौ हवाल गुरु जानउ, जानि अनजान बनउ हो,
गुरु! अतरी साँसति मोरि कीन तउ कइसे क चित मिलिहि हो।।6।।
एइ हो, तोहरा कहा गुरु मनबइ, परग पाँच चलबइ हो,
गुरु! लउटि हियाँ चली अउबइ, अजोधिया न जाबइ हो।।7।।
चैत्र मास की नवमी तिथि को राम ने यज्ञ करने का निश्चय किया। उन्होंने सोचा कि सीता के बिना तो यज्ञ सूना है, अतः लक्ष्मण से कहा—सीता को ले जाओ।।1।।
आगे के घोड़े पर वसिष्ठ मुनि तथा पीछे के घोड़े पर लक्ष्मण चले और वन में जाकर वाल्मीकि मुनि का आश्रम ढूँढ़ने लगे, जहाँ सीता तप कर रही थीं।।2।।
नहा-धोकर सीता झरोखे के पास खड़ी हुईं और देखकर कहने लगीं कि हमारे गुरु जी और देवर लक्ष्मण आ रहे हैं।।3।।
सीता जी ने सेविका को पुकार कहा—हे चेरी! शीतल जल ले आओ, गुरु जी के चरण धोऊँ। सीता गुरु वसिष्ठ के चरण धोती और जल लेकर मस्तक पर लगाती हैं।।4।।
वसिष्ठ जी बोले—हे सीता! तुम्हारे इतनी सुबुद्धि है, तुम बुद्धि में अग्रणी हो। किसने तुम्हारा ज्ञान हर लिया है कि राम को विस्मृत कर दिया।।5।।
सीता ने कहा—हे गुरु जी! आप तो सारा हाल जानते हैं और जानकर अनजान बनते हैं। स्वामी राम ने मेरी कितनी साँसत की तो भला हृदय कैसे मिलेगा?।।6।।
आपका कहना करूँगी, अयोध्या की ओर पाँच पग चलूँगी, किंतु पुनः लौटकर यहाँ चली आऊँगी, अयोध्या नहीं जाऊँगी।।7।।
- पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 152)
- संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
- प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
- संस्करण : 2002
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