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समाचार-पत्रों का विराट् रूप

samachar patron ka virat swaroop

महावीर प्रसाद द्विवेदी

अन्य

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महावीर प्रसाद द्विवेदी

समाचार-पत्रों का विराट् रूप

महावीर प्रसाद द्विवेदी

और अधिकमहावीर प्रसाद द्विवेदी

    रोचक तथ्य

    नवंबर, 1904 में 'कमलकिशोर त्रिपाठी' नाम से प्रकाशित। 'साहित्य-सीकर' में संकलित।

    हे विराद् स्वरूपिन् समाचार-पत्र! आप सर्वांतर्यामी साक्षात् नारायण हैं। वृत्तपत्र, वर्तमान पत्र, समाचार-पत्र, गैजट, अख़बार आपके अनेक नाम और रूप है। अतः अनेकरूपरूपाय विष्णवे प्रभविष्णवे—आपको प्रणाम।

    2—पत्र-व्यवहार अथवा चिट्ठी-पत्री आपके पादस्थान में हैं। आप अपने विराट् पाद-प्रहार से उसका मर्दन किया करते हैं; अथवा रद्दी काग़ज़ों की टोकरी में फेंका करते हैं। पत्र-व्यवहार करने वालों, या चिट्ठी-पत्री लिखने वालों को उत्तर देना या देना, आपके पाद ही की कृपा या अनुकृपा अर अवलंबित रहता है।

    3—चुटकुले और हँसी-ठट्ठे की बातें आपके जंघास्थान में हैं। क्यों? इसे आप ख़ुद समझ जाइए।

    4—समाचार, नए-नए समाचार, विचित्र समाचार और स्फुट समाचार आपके उदरस्थान में हैं। इन्हीं से आपका प्रकांड, प्रलंब और प्रसूत पेट अकसर भरा रहता है। यदि और कुछ भी हो तो भी आपका विराट् रूप इन्हीं के सहारे थमा रहता है।

    5—किसी तरह रुपया कमाने के लिए किताबें और दवाइयाँ बेचने, घड़ियाँ मरम्मत करने और एजेंसी इत्यादि खोलने की युक्तियाँ निकालते रहना आपके हृदय-स्थान में है।

    6―छोटे-बड़े, तरह-तरह के लीडर (टिप्पणियाँ) आपके पृष्ठस्थान में है। उन्हें आपकी पीठ की रीढ़ कहना चाहिए। जो वे हों तो आपका विराट् रूप कुबड़ा हो जाए।

    7—विज्ञापन की छपाई और अपने मूल्य आदि के नियम आपके बाहुस्थान में हैं; क्योंकि उनकी घोषणा आप सबसे पहले ऊर्ध्वबाहु होकर करते हैं।

    8—स्थानीय समाचार आपके कंठ-स्थान में हैं।

    9—मुख्य लेख आपके मुख-स्थान में है।

    10—अपने प्रेस की पुस्तकों के विज्ञापन आपके नेत्र स्थान में हैं; क्योंकि उनकी तरफ़ आपकी हमेशा निगाह रहती है।

    11—अँग्रेज़ी अख़बारों से लेख, ख़बरें और, तसवीरें नक़ल कर लेना आपके शीर्ष स्थान में है। इस काम को आप सिर के बल करते हैं।

    12—अग्रिम मूल्य आपके परमानंद स्थान में है।

    13—पश्चात् मूल्य आपके क्लेश-स्थान में है।

    14—प्रेस (छापाख़ाना) आपके मंदिर-स्थान में है।

    15—छापने की कल या मशीन आपके मातृ-स्थान में है।

    16—छापनेवाले, प्रेसमैन, मशीनमैन, आपके पितृ-स्थान में हैं।

    17—टाइप आपके अस्थि-स्थान में है।

    18—स्याही आपके शोणित-स्थान में है।

    19—काग़ज़ आपका स्थूल और लेख आपका सूक्ष्म शरीर है।

    20—अंतरात्मा आपका धर्म, अथवा धर्म के नाम से जो कुछ आप समझते हैं वह है। उसके खिलाफ़ किसी के कुछ कहने या उस पर दोषों का आरोप करने, से आपकी आत्मा तड़पने लगती है; जलते हुए अँगारों से भून-सी जाती है। कुछ शांत होने पर जो आप सन्निपात की जैसी कल्पना (Delirium) शुरू करते हैं तो बरसों आपका मुँह नहीं बंद होता। धर्म पर आघात, व्याघात, प्रतिघात और प्रत्याघात का शोर मचाते हुए लेख लेख लेख—लेख पर लेख, आप लिखते ही चले जाते हैं।

    21—नीति (पालिसी) आपकी घोर अंधकार में पड़े रहना; पर दूसरों को खाने में खींच लाने के लिए जी-जान से उतारू रहना मज़मून पर मज़मून लिखते जाना; भारत के गारत होने, पुरानी रीति-रिवाज के डूबने और अँग्रेज़ी शिक्षा के पेड़ में कड़वे फल लगने की आठ पहर चौंसठ पड़ी पुकार मचाना; और समुद्र यात्रा का नाम सुनते ही जाल में फँसे हुए हिरन की तरह घबरा उठना है।

    22—विद्वत्व आपका वह है जिसे दत्त, तिलक और टीवी वग़ैरह के, आपकी समझ के ख़िलाफ़, कुछ कर डालने पर, आप प्रकट करते हैं। फिर चाहे आप वेद का एक मंत्र भी सही-सही पढ़ सकें, अथवा दर्शनों, पुरानों, स्मृतियों और उपनिषदों की एक स्तर का भी मतलब नमझ सकें, पर आप ऐसी-ऐसी तर्कना, वितर्कना और कुतर्कनाएँ करते हैं और ऐसी-ऐसी आलोचनाएँ पर्यालोचनाएँ और समालोचनाएँ लिखकर इन लोगों के धुर्रे उड़ाते हैं कि आपकी पंडित-प्रभा संसार के सारे संस्कृत पंडितों की आँखों में चकाचौंध पैदा कर देती है।

    23—अन्नदाता! आपके लुधियाना, लाहौर, अलीगढ़, मुरादाबाद और झाँसी आदि के मित्र, गुप्त और प्रसुप्त इत्यादि, प्रकट, अप्रकट और प्रकटाप्रकट नामबारी विज्ञापनबाज़ हैं। इन कोकशास्त्री, रविशास्त्री और कामशास्त्री जीवों के दर्शन अंधी खोपड़ी के आदमियों को बहुत ही दुर्लभ हैं। कई वर्ष हम मुरादाबाद में रहे और झाँसी में भी हमने अनेक चक्कर लगाए; परंतु इन पुण्यात्माओं का दर्शन हमें नसीब हुआ।

    24—जीवनी-शक्ति आपकी सैकड़ों तरह के तांबूल-बिहार के हज़ारों तरह के उपदेशहारक, प्रमेहमारक, शुक्रकारक दवाओं के; लाखों तरह के बीसा, पच्चीसा, तीसा यंत्र और उड्डीस, साबर, बृहत्सावर, महाबृहत्सावर तंत्रों के अजीब-अजीब विज्ञापन हैं।

    25—बल आपका उपहार है। अगर आप उपहार को बाँटकर अपने बल को क़ायम रखने या बढ़ाने की चेष्टा पर चेष्टा करते रहें तो शीघ्र ही आपको घुटने थामकर उठने, या खड़े रहने की ज़रूरत पड़े। इसलिए आपको उपहार का बहुत बड़ा ख़्याल रहता है और उसकी तारीफ़ लिखने में आप सहस्त्रबाहु हो जाते हैं।

    26—खेल आपका टेबल, आलमारी, ताक, संदूक़ और चारपाई पर पड़े हुए सामयिक साहित्य, पुस्तक, धन्य, किताब, अख़बार वग़ैरह की समालोचना है। खेल क्या यह तो आपकी एक अद्भुत लीला है। कभी आप किसी-किसी किताब की छपाई की तारीफ़ करते हैं; कभी उसके काग़ज़ की; और कभी उसके लिखने वाले की भूल से कभी आप उसके गुण-दोष की भी एक-आध बात कह डालते हैं। एक बात बाग़ में अजीब है। वह यह कि अँग्रेज़ी चाहे आप राम का नाम ही जानते हों, पर ज़रूरत पड़ने पर बेकन, बाइरन, कारलाइल, मिल्टन और शेक्सपियर के ग्रंथों का भी मर्म आग समझ लेते हैं और समझा भी देते हैं। वेदों पर भी आप व्याख्यान दे डालते हैं; दर्शन- शास्त्रों का सिद्धांत भी आप समझ लेते हैं; इंगलैंड तथा हिंदुस्तान के बड़े-बड़े विद्वानों की पोलिटिकल वक्तृताओं को भी आप अपने आलोचना कुठार से काटकर छिन्न-भिन्न कर डालते हैं।

    27—देशोपकार आपका पुत्र; धर्म रक्षा आपकी कन्या; अच्छी-अच्छी पुस्तकों की प्राप्ति आपकी पत्नी; और ऐसी-वैसी पुस्तकें और ओषधियाँ आपकी दासियाँ है।

    28—संपादक आपके दोस्त और मुफ़्त पढ़ने वाले आपके जानी दुश्मन हैं।

    29—पताका आपकी हिंदुस्तान की हित-चिंता; नक्कारा आपका अज्ञान की गहरी नींद में सोए हुओं को जगाना; पराक्रम आपका सनातन धर्म की साफ़ सड़क से भटके हुओं को रास्ता बतलाना है।

    30—ऐसे आपके इस व्यापक विराट् रूप का हम त्रिकाल ध्यान करते हैं। आपकी तीन त्रिगुणात्म मूर्तियाँ हैं—प्रत्याहिक, साप्ताहिक और पाक्षिक। मासिक और त्रैमासिक आपके लीलावतार हैं। ऐसे लीलामय आपके विकट विराट् रूप को छोड़क हम—कस्मै देवाय हविषा विधेम?

    स्तावकास्तव चतुर्मुखादयो

    भावुकाश्च भगवन् भवादयः।

    सेवका शतमखादयः सुरा

    वृत्तपत्र! यदि, के तदा वयम्?

    स्रोत :
    • पुस्तक : महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड-2 (पृष्ठ 408)
    • संपादक : भारत यायावर
    • रचनाकार : महावीरप्रसाद द्विवेदी
    • प्रकाशन : किताबघर प्रकाशन
    • संस्करण : 2007

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