सस्ते का चक्कर

saste ka chakkar

सूर्यबाला

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सस्ते का चक्कर

सूर्यबाला

और अधिकसूर्यबाला

    (छुट्टी के घंटे की आवाज़, आठ-दस बच्चे एक दूसरे को धक्का देते हँसते, चिढ़ाते बैग लिए भागते हुए चले जाते हैं। बीच-बीच में स्टेज के अंदर से फेरीवालों की मज़ेदार लटके भरी आवाज़ें—चने कुरमुरे चटख़ारेदार, येई तरावटी आइसक्रीम, खट्टी गोलियाँ, ठंडा शरबत, नीबू-संतरे का...अजय और नरेंद्र आते हैं—उम्र नौ-दस वर्ष अजय दुबला, नरेंद्र तगड़ा...लगातार चटर-मटर की आवाज़ करता नरेंद्र चूरन खा रहा है।)
     
    नरेंद्र : अरे अजय! तू तो इस समय (नक़ल करके) रोज़ लेफ़्ट-राइट, पाजामा ढीला टोपी टाइट-करता रहता है न! आज अभी कैसे? डंडी मार दी न बच्चू-कैसा पकड़ा? और ड्रामे से भी निकाल दिया क्या टीचर ने? ऐ?
     
    अजय : नहीं, आज मम्मी की तबियत कुछ ख़राब थी, मैंने टीचर से कहा तो उन्होंने मुझे छुट्टी दे दी। मेरा पार्ट मुझे याद भी था न! मैंने सोचा मम्मी तो रोज़ मुझे चाय-नाश्ता कराती हैं, आज मैं घर जल्दी पहुँचकर उन्हें चाय बनाकर पिलाऊँ तो किती ख़ुश होगी वह!
     
    नरेंद्र : (बिना सुने) वाह! ले इसी बात पर चूरन खा—बड़ा मज़ेदार है। लेकिन एक बात बता यार! आख़िर तू सारे दिन इतनी पढ़ाई-लिखाई, ड्रामा-डिबेट की मशक़्क़त आख़िर काहे को करता है? ऐं मुझे देख-क्या मौज भरी ज़िंदगी है—सैर सपाटा, खेल तमाशा। (इसके साथ ही एक आदमी थोड़े से लाली पॉप बेचता हुआ आता है—पचास पैसे में तीन लाली पॉप, पचास पैसे में तीन...)
     
    नरेंद्र : (चौंककर) अरे सुना है तूने? पचास पैसे में तीन यानी एक रुपए में छह लाली पॉप! मज़ा आ गया...पर मेरे तो सारे पैसे ही ख़त्म हो गए, चूरन, चुस्की, आइसक्रीम ले ली—सुन, तेरे पास होंगे कुछ पैसे?
     
    अजय : एक भी नहीं।
     
    नरेंद्र: अरे उधार दे दे, उधार—कल पाँच पैसे ज़्यादा लौटा दूँगा। समझ क्या रखा है (रुककर) सुन रिक्शे के तो होंगे?
     
    अजय : हाँ हैं तो—पर रिक्शे के पैसों के लाली पॉप ख़रीद लूँ मैं? यह तो चीटिंग होगी।
     
    नरेंद्र : अरे बाप रे! तू तो हरिशचंद्र जी का भी पड़दादा निकला। माँगे पैसे, देने लगा सीख! शुरू कर दी अपनी महाबोर स्पीच, मत दे, मत दे, ठीक—मैंने फ़ीस नहीं दी। आज उसके पैसे तो हैं ही।
     
    अजय : (समझाते हुए) देख नरेंद्र! तू हमेशा बिना सोचे समझे काम कर डालता है। मेरी बात मान, इस आदमी से लाली पॉप लेना बिल्कुल ठीक नहीं—मुझे लगता है या तो यह कहीं से चुराकर लाया है या कहीं से नुक़सानदेह ख़राब माल उठा लाया है—मेरी मम्मी कहती है...
     
    नरेंद्र : (बात काटकर) अरे! फिर तुझे तेरी मम्मी याद आ गई—मेरी बात मानेगा? तू ज़रा अपने दूसरे कान से भी तो कुछ काम लिया कर...
     
    अजय : क्या मतलब?
     
    नरेंद्र : (हँसकर) एक कान से सुनी, दूसरे कान से निकाल दी—समझा?
     
    अजय : समझा! अब से तेरी बात के लिए ही यह दूसरा कान काम में लाऊँगा...(दोनों ज़ोर से हँसते हैं)
     
    नरेंद्र: सचमुच तू ज़रूरत से ज़्यादा सोचता है—इसी से (उँगली दिखाकर) दुबला सीकिया है—मुझे देख-हट्टा-कट्टा दारा सिंह का पट्ठा-रुस्तमेहिंद (हँसता है) अरे देख लाली पॉप वाला निकल गया तेरी बातों में अरे वो...वो जा रहा है, रुकना भाई। हाँ अजय, तू ठहर मैं अभी ले के आया। और हाँ मैंने अपने रिक्शे के पैसों की तो चूरन-चुसकी खा ली। प्लीज़ अपने साथ ही रिक्शे से लेते चलना मुझे—बस अभी आता हूँ...
     
    (जाता है)
     
    (अजय इधर-उधर टहलता बेसब्री से इंतज़ार करता है)
     
    अजय : इस नरेंद्र को कभी अक़्ल नहीं आएगी। सब सड़ी-गली चीज़ें खाए‌गा और वार्षिक परीक्षाओं में बीमार पड़ेगा...आँटी डाँटती है तो फट झूठ बोल जाएगा—बेचारी आँटी—देख...अभी तक नहीं आया...
     
    (दो-तीन बच्चे आते हैं)
     
    पहला लड़का : अरे अजय! तू तो कब का टीचर से छुट्टी लेकर आया था, यहाँ क्या कर रहा है?
     
    अजय : क्या करूँ, मुझे ख़ुद इतनी देर हो रही है—नरेंद्र कब का उधर लाली पॉप लेने गया अभी तक आया ही नहीं—उसे मेरे रिक्शे में जाना है।
     
    दूसरा लड़का : कौन नरेंद्र? उसे तो मैंने काफ़ी देर पहले एक आदमी के साथ पीछे वाले आम के बग़ीचे में जाते देखा था—मैंने पूछा भी तो बोला इसके पास छुट्टे पैसे नहीं, वही लेने जा रहा हूँ...
     
    तीसरा लड़का : अरे तू घर जा...नरेंद्र को जानता नहीं? उसके फेर में पड़ा तो अपनी भी शामत आई समझ। आता है तो आ जा मेरे साथ तुझे तेरे घर छोड़ दूँगा।
     
    अजय : (सोचते हुए) नहीं सुभाष! मुझे डर है कहीं वह आदमी कोई बदमाश तो नहीं...(लड़कों से) तुम लोग ज़रा आओ न—देखा जाए कहीं नरेंद्र...
     
    पहला : ना बाबा ना, यह जासूसी हमें नहीं करनी वैसे ही देर हो गई है, मेरी मम्मी मानने वाली नहीं—अपन तो चले, नरेंद्र की नरेंद्र जानें, जैसा करेगा वैसा भरेगा, हम क्यों अपनी जान ख़तरे में डालें।
     
    दूसरा : (तीसरे से) चल हम भी जल्दी चलें, नरेंद्र के फेर में कहीं भी आफ़त में फँसे तो ख़ैर नहीं...बॉय अजय...(जाते हैं)
     
    अजय : (थका-उदास परेशान होकर इधर-उधर टहलता है) कहाँ गया नरेंद्र आख़िर? अब तो बहुत देर हो गई, रास्ता भी सुनसान हो गया...स्कूल में भी कोई नहीं! किससे पूछूँ? (तभी) अरे! यह सरसराहट कैसी? आम के बग़ीचे से ही आ रही है। छुपकर बग़ीचे की ओर चलता हूँ आख़िर नरेंद्र गया किधर?
     
    (जाता है)
     
    (नरेंद्र को मम्मी रेखा, अजय की मम्मी मिसेज़ मेहता के घर आती हैं)
     
    मिसेज़ मेहता : कौन रेखा जी? नमस्ते, आइए बैठिए।
     
    रेखा : (घबराई आवाज़ में) नहीं, बैठूँगी नहीं बहन! मैं पूछने आई हूँ कि क्या आपका अजय आ गया? मेरा नरेंद्र अभी तक स्कूल से नहीं लौटा...
     
    मिसेज़ मेहता : आया तो अजय भी नहीं, पर उसे सालाना जलसे की प्रैक्टिस में देर हो जाया करती है, लेकिन आज मेरी तबियत भी ठीक नहीं थी। सुबह...अजय कह गया था टीचर से जल्दी छुट्टी माँग लूँगा...शायद टीचर ने छुट्टी नहीं दी और नरेंद्र भी उसके साथ रुक गया हो।
     
    रेखा : नहीं बहन...नरेंद्र ज़रा शरारती है न। इसी से डर लग रहा है...देखिए एक बजे छुट्टी होती है, ढाई बज रहे हैं...
     
    मिसेज़ मेहता : क्या सचमुच? मुझे तो दवा खाकर नींद आ गई थी, समय का पता ही नहीं चला, इतनी देर तो अजय को भी नहीं होनी चाहिए।
     
    रेखा : (रोने के स्वर में) कुछ कीजिए जल्दी, मिसेज़ मेहता। हाय मेरा नरेंद्र...
     
    मिसेज़ मेहता : घबराइए नहीं, रेखा जी-देखिए मेरा बेटा भी तो है लेकिन अजय पर तो मुझे पूरा विश्वास है...ठहरिए...रिक्शा लेकर चलते हैं...देर सचमुच काफ़ी हो गई है।
     
    रेखा : (जल्दी से) आप आइए, तब तक में रिक्शा बुलाती हूँ।
     
    (रेखा रिक्शा बुलाने के लिए पीछे की ओर मुड़ती है, तब तक सामने देखकर ख़ुशी से चीख़ पड़ती है।)
     
    रेखा : आ गए! आ गए! बहन बच्चे, देखिए...
     
    मिसेज़ मेहता : सच? अरे हाँ, पर दोनों के साथ ये पुलिस इंस्पेक्टर!
     
    (भारी बूट की आवाज़ के साथ इंस्पेक्टर आता है)
     
    इंस्पेक्टर : (भारी आवाज़ में) मिस्टर मेहता का घर है यह?
     
    मिसेज़ मेहता : जी-जी हाँ...कहिए! ये बच्चे आपको कहाँ मिले? इंस्पेक्टर (अजय की ओर संकेत कर)-बच्चा आपका है?
     
    मिसेज़ मेहता : जी हाँ-अजय है इसका नाम...क्या किया इसने?
     
    इंस्पेक्टर : आज तो इसने वो शाबाशी का काम किया है कि आप सुनेंगी तो गर्व से झूम उठेंगी...
     
    मिसेज़ मेहता : क्या? मैं तो इस पर नाराज़ हो रही थी कि समय से घर नहीं लौटा।
     
    इंस्पेक्टर : (हँसकर) आज अजय ने अपने इस दोस्त—क्या नाम है इसका—नरेंद्र की जान बचाई है और एक बड़े गिरोह के सरदार को पकड़वाया है।
     
    मिसेज़ मेहता : ओह! वो कैसे इंस्पेक्टर साहब?
     
    इंस्पेक्टर : अब ये सब तो आप ख़ुद अजय से सुनिए—हाँ सुना दो बेटे...?
     
    अजय : मम्मी! आज मैंने टीचर से जल्दी छुट्टी माँग ली कि तुम्हारी तबियत ख़राब है, पर बाहर आया तो नरेंद्र मिल गया। फाटक पर एक आदमी पचास पैसे में तीन लाली पॉप बेच रहा था। मैंने नरेंद्र को मना किया, पर यह इतने सस्ते लाली पॉप सुनकर अपने को रोक नहीं पाया...चला गया...(साँस लेने को रुकता है)
     
    रेखा : फिर?
     
    अजय : फिर आँटी, मैं बहुत देर तक खड़ा रहा। सब ओर सुनसान हो गया—तब दूर पर मुझे कुछ सरसराहट मालूम हुई। इसके पहले मेरे एक दोस्त ने बताया था कि नरेंद्र आम के बग़ीचे की तरफ़ लाली पॉप वाले से छुट्टे पैसे लेने गया है।
     
    रेखा : तो...फिर तूने क्या किया बेटे?
     
    अजय : मैं छुपते-छुपते दबे पाँव बग़ीचे में गया तो नरेंद्र का बैग पड़ा मिला, देखकर मैं हैरान रह गया। मुझे शक हुआ—तभी देखा तो दूर पर वहीं आदमी एक बड़ा-सा थैला पीठ पर रखे काली-भूरी चैक की चादर ओढ़े चला जा रहा था...मम्मी मुझे तुम्हारी सुनाई उन बदमाशों की कहानियाँ याद हो आईं जो बच्चों को उठाकर ले जाते हैं...रास्ता सूना था, इसलिए मैं चुपचाप उसके काफ़ी पीछे बिना आवाज़ किए चलता रहा।
     
    मिसेज़ मेहता : फिर?
     
    अजय : चलते-चलते मेरे पैर बिलकुल थक गए...तभी वह आदमी अचानक एक सुनसान पतली सड़क पर मुड़ गया...मेरी समझ में नहीं आया क्या करूँ...तभी देखा तो सीधी सड़क पर कुछ दूर पर पुलिस स्टेशन की लाल इमारत दिखाई दी। मैं समझ गया कि तभी यह आदमी सँकरी सड़क पर मुड़ गया...मेरा शक पक्का हो गया। मैं पूरी तेज़ी से दौड़ा और...और इंस्पेक्टर साहब को...(हाँफने लगता है)
     
    इंस्पेक्टर : वाह! अजय बेटे वाह! सुना आपने मिसेज़ मेहता...
     
    रेखा : अजय मेरे बेटे, आज तू न होता तो नरेंद्र का क्या हाल होता? (सिसकी)
     
    मिसेज़ मेहता (हँसकर) अरे तो दोस्त होकर इतना भी न करता रेखा बहन, फिर दोस्तों का मतलब ही क्या रहा, अगर मुसीबत में दोस्त-दोस्त के काम न आए।
     
    रेखा : नहीं, आज मैं अपने साथ बाज़ार ले जाऊँगी अजय को। और इसे इसके मन का शानदार इनाम ख़रीदूँगी।
     
    इंस्पेक्टर : शानदार इनाम तो अजय को प्रधानमंत्री से मिलेगा।
     
    सब (एक साथ) : क्या?
     
    इंस्पेक्टर : जी हाँ, हर साल हमारी सरकार देश के बहादुर बच्चों को उनके साहसिक कार्य के लिए पुरस्कार देती है—इस बार अजय का नाम उनमें होगा। अच्छा तो आज्ञा दीजिए...आओ अजय बेटे, एक बार फिर पीठ ठोंक दूँ तुम्हारी!
     
    अजय : थैंक्यू इंस्पेक्टर साहब...पर अभी तो आपको पहली बार की ठोंकी हुई ही मेरी पीठ दर्द कर रही है...
     
    मिसेज़ मेहता : (प्यार से) चुप (सब हँसते हैं)!

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