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पर घर कबहुँ न जाइयै

par ghar kabahun na jaiyai

वृंद

अन्य

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वृंद

पर घर कबहुँ न जाइयै

वृंद

और अधिकवृंद

    पर घर कबहुँ जाइयै गए घटत है जोति।

    रबि−मंडल मे जाति ससि छीन कला छबि होति॥

    भावार्थ: कवि कहते हैं कि बिना बुलाए व्यक्ति को कभी भी दूसरे के घर नहीं जाना चाहिए। क्योंकि इस प्रकार जाने से उसका सम्मान घट जाता है। जिस प्रकार बिना बुलाए सूर्य के घेरे में चंद्रमा के चले जाने पर, चंद्रमा की कलाओं की छवि क्षीण हो जाती है, अर्थात् धूमिल पड़ जाती है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : सतसई सप्तक (पृष्ठ 295)
    • संपादक : श्यामसुंदर दास
    • प्रकाशन : हिंदुस्तानी एकेडमी
    • संस्करण : 1931

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