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मोर मोर सब कहँ कहसि

mor mor sab kahan kahasi

तुलसीदास

तुलसीदास

मोर मोर सब कहँ कहसि

तुलसीदास

और अधिकतुलसीदास

    मोर-मोर सब कहँ कहसि, तू को कहु निज नाम।

    कै चुप साधहि सुनि समुझि, कै तुलसी जपु राम॥

    तू सबको मेरा-मेरा कहता है, परंतु यह तो बता कि तू कौन है ? और तेरा अपना नाम क्या है? तुलसी कहते हैं कि अब या तो तू इसको (नाम और रूप के रहस्य को) सुन और समझकर मौन हो जा (मेरा-मेरा कहना छोड़कर अपने स्वरूप में स्थित हो जा) या राम का नाम जप।

    स्रोत :
    • पुस्तक : दोहावली (पृष्ठ 18)
    • रचनाकार : तुलसीदास
    • प्रकाशन : मोतीलाल जालान गीताप्रेस गोरखपुर

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