कोऊ है हित की कहै
kou hai hit ki kahai
कोऊ है हित की कहै ह्वै ताही सों हेत।
सबै उड़ावत काक कौं पै बिरहनि बलि देत॥
भावार्थ: वृंद कवि कहते हैं कि अपने हित की बात कहने वाला चाहे कोई भी हो, उसके साथ प्रेम हो जाता है। क्योंकि उससे स्वार्थ सिद्ध होने का भाव जुड़ा हुआ होता है। जिस प्रकार लोग कौए को उड़ा देते हैं, क्योंकि उससे उनका कोई हित नहीं सधता है लेकिन वियोगिन स्त्री उसे भोजन बुला−बुलाकर देती है, क्योंकि उसका कौए से हित जुड़ा हुआ होता है।
- पुस्तक : सतसई सप्तक (पृष्ठ 297)
- संपादक : श्यामसुंदर दास
- प्रकाशन : हिंदुस्तानी एकेडमी
- संस्करण : 1931
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