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कोपें सोच न पोच कर

kopen soch na poch kar

तुलसीदास

तुलसीदास

कोपें सोच न पोच कर

तुलसीदास

और अधिकतुलसीदास

    कोपें सोच पोच कर, करिम निहोर काज।

    तुलसी परमिति प्रीति की, रीति राम के राज॥

    तुलसीदास जी कहते हैं कि श्री रामचंद्र जी के राज्य में प्रेम की रीति सीमा तक पहुँच गई थी। इनसे तो किसी के क्रोध करने पर कोई उसकी चिंता ही करता और उसका कोई अपार ही करता। सब लोग सबका काम प्रेम से करते। काम करने में कोई किसी पर अहसान नहीं जताता।

    स्रोत :
    • पुस्तक : दोहावली (पृष्ठ 65)
    • रचनाकार : तुलसीदास
    • प्रकाशन : मोतीलाल जालान गीताप्रेस गोरखपुर

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